सावन_विशेष....

 सावन_विशेष...




#शिव, #हर, #भव, #सर्व ये चार नाम भगवान शिव के अति प्रसिद्ध हैं। शिव कल्याण का वाचक है। हर संहार का वाचक है भव सृष्टि का वाचक है और जो अपना सब कुछ दूसरे को दे डाले वह सर्व कहलाता है - 


#येन_सर्वं_प्रदत्तं_हि_तस्मात्सर्व_इति_स्मृतः।#रावण कहता है।            "#शिवेति_नाम_उच्चरन्_सदा_सुखी_भवाम्यहम्" 

 शिव शब्द बोलते ही मैं सुखी हो जाता हूँ। #शिव और #राम ये दो नाम #आत्म_कल्याण_कारक हैं। ये दोनों मन्त्र भी हैं। शिव अक्षर की विशेषता है कि इसके उच्चारण से #स्वर्ग या #मोक्ष की प्राप्ति अवश्य होती है--

शिवेति  द्वयक्षरं नाम व्याहरिष्यन्ति  ये जना:।

तेषां  स्वर्गश्च  मोक्षश्च भविष्यन्ति न चान्यथा ।।

 #शिव अक्षर क्यों है प्रभावशाली? समुद्र मंथन के बाद जगत की रक्षा के लिए गरल पान करते ही हाहाकार मच  गया, परन्तु  लोक की रक्षा हो गयी और उनका गला नीला पड़ गया। वे उसी क्षण शिव और #नीलकंठ नाम से विख्यात हो गये। महागरल जिसकी बूँदें पृथिवी को जला डालने में सक्षम थीं वे शिव की कण्ठ नलिका को नहीं जला सकीं।

परम उदार है शिव शब्द -- जो विष पी कर दूसरे को अमृत बांटे वही शिव हो सकता है। कल्याण के साथ शिव में परम उदारता भी है-

#उदारो_हि_महादेवो_देवानां_पतिरीश्वरः।


#इच्छित_लाभ_के_सद्यः_फलदायी_देवता " शिव " -

तुलसीदास अपने मानस में लिखते हैं-शिव की आराधना के बिना मनोरथ पूरे नहीं होते चाहे जितने यज्ञ कर लिये जायें -

               इच्छित फल बिन शिव अवराधे

               लहहिं  न  कोटि  योग जप साधे।

#पुराण भी यही कहते हैं -- 

              विना सदाशिवं यो हि संसारं तर्तुमिच्छति।

              स  मूढो हि महापाप: शिवद्वेषी न संशयः।।

शिव को नमः करने पर वे अपना मनः भक्त को दे देते हैं। डमरू न हो तो गाल बजा देने से ही प्रसन्न हो जाते हैं। रव: ( शब्द ) करने से वर: दे देते हैं। सच में ऐसा तो कोई हो ही नहीं सकता। उनकी सद्यः प्रसन्नता ही देवों को कष्ट देने का कारण बन जाती है। अतः एकमात्र उनका ही नाम आशुतोष कहलाता है। वे भस्मासुर को भी वर दे देते हैं। इसीलिये उनको अवढर दानी भी कहा गया है। रावण उनको पक्ष और विपक्ष दोनों का सुहृद कहता था-#सुहृद_विपक्ष_पक्षयोः। वे महाकाल हैं पर अकाल हरण भी वे ही करते हैं। आजतक महामृत्युंजय जैसा मन्त्र सृष्टि में कहाँ उपलब्ध हो पाया? अतः शिव "#सर्व" हैं। 

महाकवि कालिदास ने लिखा -- भव ने तृतीय नेत्र खोल कर अग्नि से कामदेव को जला दिया।

तावत् स वह्नि भव नेत्र जन्मा भस्मावशेषम् मदनं चकार।

समीक्षक चक्कर में पड़ गये " हर नेत्र जन्मा " को भव नेत्र जन्मा क्यों लिखा। हर संहार करते हैं भव सृष्टि। यहाँ तो संहार हुआ है फिर क्यों भव ? उत्तर उसी में है- देवों के कार्य सिद्धि हेतु वे रति को वरदान देते हैं - कामदेव श्रीकृष्ण के घर में उत्पन्न होगा। उत्पन्न होने का वर देने से हर नहीं भव कहा गया।

आहर प्रहर शब्द का चमत्कार --- राजा इन्द्रसेन शिकार खेलने का व्यसनी था। मित्रों के साथ जंगल में जा कर बोलता था -- #आहर ( घेर लो ) #प्रहर ( मार ) डालो ।

शिकार खेलते समय यही बोल रहा था कि सिंह ने उस पर आक्रमण कर दिया। वह केवल हर हर बोल पाया। भय से आ और प्र अक्षर मुख से नहीं निकल सके। शिव के गणों ने उस हर के उच्चारण के कारण उसे भगवान शिव के लोक में पहुचा दिया।

 तो आइये श्रावण मास में शिव का अधिकाधिक अक्षर जप करे।#श्री शिवायः नमशतुभ्यं

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