भारतवर्ष के गुरुकुलों में क्या पढ़ाई होती थी?? 🤔

भारतवर्ष के गुरुकुलों में क्या पढ़ाई होती थी,ये जान लेना आवश्यक है🤔 



इस शिक्षा को लेकर अपने विचारों में परिवर्तन लाएं और भ्रांतियां दूर करें।

1. अग्नि विद्या ( Metallergy )

2. वायु विद्या ( Aviation ) 

3. जल विद्या ( Navigation ) 

4. अंतरिक्ष विद्या ( Space Science) 

5. पृथ्वी विद्या ( Environment & Ecology)

6. सूर्य विद्या ( Solar System Studies ) 

7. चन्द्र व लोक विद्या ( Lunar Studies ) 

8. मेघ विद्या ( Weather Forecast ) 

9. पदार्थ विद्युत विद्या ( Battery )

10. सौर ऊर्जा विद्या ( Solar Energy ) 

11. दिन रात्रि विद्या 

12. सृष्टि विद्या ( Space Research ) 

13. खगोल विद्या ( Astronomy) 

14. भूगोल विद्या (Geography ) 

15. काल विद्या ( Time ) 

16. भूगर्भ विद्या (Geology and Mining ) 

17. रत्न व धातु विद्या ( Gemology and Metals ) 

18. आकर्षण विद्या ( Gravity ) 

19. प्रकाश विद्या ( Optics) 

20. तार संचार विद्या ( Communication ) 

21. विमान विद्या ( Aviation ) 

23. जलयान विद्या ( Water , Hydraulics Vessels ) 

24. अग्नेय अस्त्र विद्या ( Arms and Amunition )

24. जीव जंतु विज्ञान विद्या ( Zoology Botany ) 

25. यज्ञ विद्या ( Material Sc)

वैज्ञानिक विद्याओं की अब बात करते है व्यावसायिक और तकनीकी विद्या की।

वाणिज्य ( Commerce )

भेषज (Pharmacy)

शल्यकर्म व चिकित्सा (Diagnosis and Surgery) 

कृषि (Agriculture ) 

पशुपालन ( Animal Husbandry ) 

पक्षिपलन ( Bird Keeping ) 

पशु प्रशिक्षण ( Animal Training ) 

यान यन्त्रकार ( Mechanics) 

रथकार ( Vehicle Designing ) 

रतन्कार ( Gems ) 

सुवर्णकार ( Jewellery Designing ) 

वस्त्रकार ( Textile) 

कुम्भकार ( Pottery) 

लोहकार (Metallergy)

तक्षक (Toxicology)

रंगसाज (Dying) 

रज्जुकर (Logistics)

वास्तुकार ( Architect)

पाकविद्या (Cooking)

सारथ्य (Driving)

नदी जल प्रबन्धक (Dater Management)

सुचिकार (Data Entry)

गोशाला प्रबन्धक (Animal Husbandry)

उद्यान पाल (Horticulture)

वन पाल (Forestry)

नापित (Paramedical)

अर्थशास्त्र (Economics)

तर्कशास्त्र (Logic)

न्यायशास्त्र (Law)

नौका शास्त्र (Ship Building)

रसायन शास्त्र (Chemical Science)

ब्रह्मविद्या (Cosmology)

न्याय वैद्यक शास्त्र (Medical Jurisprudence) - अथर्ववेद

क्रव्याद (Postmortem) --अथर्ववेद 

आदि विद्याओ क़े तंत्रशिक्षा क़े वर्णन हमें वेद और उपनिषद में मिलते है।यह सब विद्या गुरुकुल में सिखाई जाती थी पर समय के साथ गुरुकुल लुप्त हुए तो यह विद्या भी लुप्त होती गयी।आज अंग्रेजी मैकाले पद्धति से हमारे देश के युवाओं का भविष्य नष्ट हो रहा तब ऐसे समय में गुरुकुल के पुनः उद्धार की आवश्यकता है।कुछ प्रसिद्ध भारतीय प्राचीन ऋषि मुनि वैज्ञानिक एवं संशोधक।

पुरातन ग्रंथों के अनुसार, प्राचीन ऋषि-मुनि एवं दार्शनिक हमारे आदि वैज्ञानिक थे, जिन्होंने अनेक आविष्कार किए और विज्ञान को भी ऊंचाइयों पर पहुंचाया।

अश्विनीकुमार:- मान्यता है कि ये देवताओं के चिकित्सक थे। कहा जाता है कि इन्होंने उड़ने वाले रथ एवं नौकाओं का आविष्कार किया था।

धन्वंतरि:- इन्हें आयुर्वेद का प्रथम आचार्य व प्रवर्तक माना जाता है। इनके ग्रंथ का नाम धन्वंतरि संहिता है। शल्य चिकित्सा शास्त्र के आदि प्रवर्तक सुश्रुत और नागार्जुन इन्हीं की परंपरा में हुए थे।

महर्षि भारद्वाज:-आधुनिक विज्ञान के मुताबिक राइट बंधुओं ने वायुयान का आविष्कार किया। वहीं हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक कई सदियों पहले ही ऋषि भारद्वाज ने विमान शास्त्र के जरिए वायुयान को गायब करने के असाधारण विचार से लेकर, एक ग्रह से दूसरे ग्रह व एक दुनिया से दूसरी दुनिया में ले जाने के रहस्य उजागर किए। इस तरह ऋषि भारद्वाज को वायुयान का आविष्कारक भी माना जाता है।

महर्षि विश्वामित्र: -ऋषि बनने से पहले विश्वामित्र क्षत्रिय थे। ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु गाय को पाने के लिए हुए युद्ध में मिली हार के बाद तपस्वी हो गए। विश्वामित्र ने भगवान शिव से अस्त्र विद्या पाई।इसी कड़ी में माना जाता है कि आज के युग में प्रचलित प्रक्षेपास्त्र या मिसाइल प्रणाली हजारों साल पहले विश्वामित्र ने ही खोजी थी। ऋषि विश्वामित्र ही ब्रह्म गायत्री मंत्र के द्रष्टा माने जाते हैं। विश्वामित्र का अप्सरा मेनका पर मोहित होकर तपस्या भंग होना भी प्रसिद्ध है। शरीर सहित त्रिशंकु को स्वर्ग भेजने का चमत्कार भी विश्वामित्र ने तपोबल से कर दिखाया।

महर्षि गर्ग मुनि:- गर्ग मुनि नक्षत्रों के खोजकर्ता माने जाते हैं। यानी सितारों की दुनिया के जानकार।ये गर्ग मुनि ही थे, जिन्होंने श्रीकृष्ण एवं अर्जुन के बारे में नक्षत्र विज्ञान के आधार पर जो कुछ भी बताया,वह पूरी तरह सही साबित हुआ।कौरव- पांडवों के बीच महाभारत युद्ध विनाशक रहा। इसके पीछे वजह यह थी कि युद्ध के पहले पक्ष में तिथि क्षय होने के तेरहवें दिन अमावस थी। इसके दूसरे पक्ष में भी तिथि क्षय थी। पूर्णिमा चौदहवें दिन आ गई और उसी दिन चंद्रग्रहण था।तिथि - नक्षत्रों की यही स्थिति व नतीजे गर्ग मुनिजी ने पहले बता दिए थे।

महर्षि पतंजलि:- आधुनिक दौर में जानलेवा बीमारियों में एक कैंसर या कर्करोग का आज उपचार संभव है। किंतु कई सदियों पहले ही ऋषि पतंजलि ने कैंसर को भी रोकने वाला योगशास्त्र रचकर बताया कि योग से कैंसर का भी उपचार संभव है।

महर्षि कपिल मुनि:- सांख्य दर्शन के प्रवर्तक व सूत्रों के रचयिता थे महर्षि कपिल, जिन्होंने चेतना की शक्ति एवं त्रिगुणात्मक प्रकृति के विषय में महत्वपूर्ण सूत्र दिए थे।

महर्षि कणाद:- ये वैशेषिक दर्शन के प्रवर्तक हैं। ये अणु विज्ञान के प्रणेता रहे हैं। इनके समय अणु विज्ञान दर्शन का विषय था, जो बाद में भौतिक विज्ञान में आया।

महर्षि सुश्रुत: - ये शल्य चिकित्सा पद्धति के प्रख्यात आयुर्वेदाचार्य थे। इन्होंने सुश्रुत संहिता नामक ग्रंथ में शल्य क्रिया का वर्णन किया है। सुश्रुत ने ही त्वचारोपण (प्लास्टिक सर्जरी) और मोतियाबिंद की शल्य क्रिया का विकास किया था। पार्क डेविस ने सुश्रुत को विश्व का प्रथम शल्यचिकित्सक कहा है।

जीवक:- सम्राट बिंबसार के एकमात्र वैद्य। उज्जयिनी सम्राट चंडप्रद्योत की शल्य चिकित्सा इन्होंने ही की थी। कुछ लोग मानते हैं कि गौतम बुद्ध की चिकित्सा भी इन्होंने की थी।

महर्षि बौधायन:- बौधायन भारत के प्राचीन गणितज्ञ और शुलयशास्त्र के रचयिता थे। आज दुनिया भर में यूनानी उकेलेडियन ज्योमेट्री पढाई जाती है मगर इस ज्योमेट्री से पहले भारत के कई गणितज्ञ ज्योमेट्री के नियमों की खोज कर चुके थे। उन गणितज्ञ में बौधायन का नाम सबसे ऊपर है, उस समय ज्योमेट्री या अलजेब्रा को भारत में शुल्वशास्त्र कहा जाता था।

महर्षि भास्कराचार्य:- आधुनिक युग में धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति (पदार्थों को अपनी ओर खींचने की शक्ति) की खोज का श्रेय न्यूटन को दिया जाता है। किंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि गुरुत्वाकर्षण का रहस्य न्यूटन से भी कई सदियों पहले भास्कराचार्यजी ने उजागर किया। भास्कराचार्यजी ने अपने ‘सिद्धांतशिरोमणि’ ग्रंथ में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बारे में लिखा है कि ‘पृथ्वी आकाशीय पदार्थों को विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचती है। इस वजह से आसमानी पदार्थ पृथ्वी पर गिरता है’।

महर्षि चरक:- चरक औषधि के प्राचीन भारतीय विज्ञान के पिता के रूप में माने जातें हैं। वे कनिष्क के दरबार में राज वैद्य (शाही चिकित्सक) थे, उनकी चरक संहिता चिकित्सा पर एक उल्लेखनीय पुस्तक है। इसमें रोगों की एक बड़ी संख्या का विवरण दिया गया है और उनके कारणों की पहचान करने के तरीकों और उनके उपचार की पद्धति भी प्रदान करती है। वे स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण पाचन, चयापचय और प्रतिरक्षा के बारे में बताते थे और इसलिए चिकित्सा विज्ञान चरक संहिता में, बीमारी का इलाज करने के बजाय रोग के कारण को हटाने के लिएअधिक ध्यान रखा गया है।चरकअनुवांशिकी(अपंगता) के मूल सिद्धांतों को भी जानते थे।

ब्रह्मगुप्त:- 7 वीं शताब्दी में, ब्रह्मगुप्त ने गणित को दूसरों से परे ऊंचाइयों तक ले गये। गुणन के अपने तरीकों में, उन्होंने लगभग उसी तरह स्थान मूल्य का उपयोग किया था, जैसा कि आज भी प्रयोग किया जाता है। उन्होंने गणित में शून्य पर नकारात्मक संख्याएं और संचालन शुरू किया। उन्होंने ब्रह्म मुक्त सिध्दांतिका को लिखा, जिसके माध्यम से अरब देश के लोगों ने हमारे गणितीय प्रणाली को जाना।

महर्षिअग्निवेश:- ये शरीर विज्ञान के रचयिता थे।

महर्षि शालिहोत्र: - इन्होंने पशु चिकित्सा पर आयुर्वेद ग्रंथ की रचना की।

व्याडि:- ये रसायन शास्त्री थे। इन्होंने भैषज (औषधि) रसायन का प्रणयन किया। अलबरूनी के अनुसार, व्याडि ने एक ऐसा लेप बनाया था, जिसे शरीर पर मलकर वायु में उड़ा जा सकता था।

आर्यभट्ट: - इनका जन्म 476 ई. में कुसुमपुर ( पाटलिपुत्र ) पटना में हुआ था। ये महान खगोलशास्त्र और व गणितज्ञ थे। इन्होंने ही सबसे पहले सूर्य और चन्द्र ग्रहण की व्याख्या की थी और सबसे पहले इन्होंने ही बताया था की धरती अपनी ही धुरी पर धूमती है और इसे सिद्ध भी किया था । और यही नहीं इन्होंने ही सबसे पहले पाई के मान को निरुपित किया।

महर्षि वराहमिहिर: - इनका जन्म 499 ई.में कपित्थ (उज्जेन) में हुआ था।ये महान गणितज्ञ और खगोलशास्त्र थे।इन्होंने पंचसिद्धान्तका नाम की किताब लिखी थी जिसमें इन्होंने बताया था कि ,अयांश का मान 50.32 सेकेण्ड के बराबर होता होता है और इन्होने शून्य और ऋणात्मक संख्याओं के बीजगणितीय गुणों को परिभाषित किया |

हलायुध:- इनका जन्म 1000 ई.में काशी में हुआ था। ये ज्योतिषविद और गणितज्ञ व महान वैज्ञानिक भी थे ।इन्होंने अभिधानरत्नमाला या मृतसंजीवनी नमक ग्रन्थ की रचना की। इसमें इन्होंने या पास्कल त्रिभुज ( मेरु प्रस्तार ) का स्पष्ट वर्णन किया है।पुरातन ग्रंथों के अनुसार, प्राचीन ऋषि-मुनि एवं दार्शनिक हमारे आदि वैज्ञानिक थे, जिन्होंने अनेक आविष्कार किए और विज्ञान को भी ऊंचाइयों पर पहुंचाया।

5000 साल पहले ब्राह्मणों ने हमारा बहुत शोषण किया, ब्राह्मणों ने हमें पढ़ने से रोका।यह बात बताने वाले महान इतिहासकार यह नहीं बताते कि इनमें से अधिकतर जन्म से ब्राह्मण नहीं थे ।साथ ही साथ यह भी नहीं बताते कि 500 साल पहले मुगलों ने हमारे साथ क्या किया 200 साल पहले अंग्रेजो ने हमारे साथ क्या किया?

हमारे देश में शिक्षा नहीं थी लेकिन 1897 में शिवकर बापूजी तलपडे़ ने हवाई जहाज बना कर उड़ाया था मुंबई में जिसको देखने के लिए उस समय के हाई कोर्ट के जज महा गोविंद रानाडे और मुंबई के एक राजा महाराज गायकवाड के साथ- साथ हजारों लोग मौजूद थे।उसके बाद एक डेली ब्रदर नाम की इंग्लैंड की कंपनी ने शिवकर बापूजी तलपडे़ के साथ समझौता किया और बाद में बापू जी की मृत्यु हो गई यह मृत्यु भी एक षड्यंत्र है, हत्या कर दी गई और फिर बाद में 1903 में राइट बंधु ने जहाज बनाया।

आप लोगों को बताते चलें कि आज से हजारों साल पहले की किताब है महर्षि भारद्वाज की विमान शास्त्र जिसमें 500 जहाज 500 प्रकार से बनाने की विधि है उसी को पढ़ कर शिवकर बापूजी तलपडे ने जहाज बनाई थी। लेकिन यह तथाकथित नास्तिक लंपट ईसाइयों के दलाल जो हैं तो हम सबके ही बीच से लेकिन हमें बताते हैं कि भारत में तो कोई शिक्षा ही नहीं थी कोई रोजगार नहीं था।

अमेरिका के प्रथम राष्ट्रपति जॉर्ज वाशिंगटन 14 दिसंबर 1799 को मरे थे सर्दी और बुखार की वजह से उनके पास बुखार की दवा  नहीं थी।पर भारत में प्लास्टिक सर्जरी होती थी और अंग्रेज प्लास्टिक सर्जरी सीख रहे थे हमारे गुरुकुल में अब कुछ वामपंथी लंपट बोलेंगे यह सरासर झूठ है।तो वामपंथी लंपट गिरोह कह सकते है कि ऑस्ट्रेलियन कॉलेज ऑफ सर्जन ,मेलबर्न में ऋषि सुश्रुत की  प्रतिमा "फादर ऑफ सर्जरी" टाइटल के साथ स्थापित है क्यों?

2000 साल पहले का मंदिर मिलते हैं जिसको आज के वैज्ञानिक और इंजीनियर देख कर हैरान में हो जाते हैं कि मंदिर बना कैसे होगा अब हमें इन वामपंथी लंपट लोगो  से  पूछना चाहिए कि  मंदिर बनाया किसने ?

ब्राह्मणों ने हमें पढ़ने नहीं दिया यह बात बताने वाले महान इतिहासकार हमें यह नहीं बताते कि सन 1835 तक भारत में 700000 गुरुकुल थे इसका पूरा डॉक्यूमेंट Indian house  में मिलेगा तो उसमें पढ़ता कौन था और वह खत्म कैसे हुआ?

भारत गरीब देश था चाहे है तो फिर दुनिया के तमाम आक्रमणकारी भारत ही क्यों आए हमें अमीर बनाने के लिए?

भारत में कोई रोजगार नहीं था।

भारत में पिछड़े दलितों को गुलाम बनाकर रखा जाता था लेकिन वामपंथी लंपट आपसे यह नहीं बताएंगे कि 1750 में पूरे दुनिया के व्यापार में भारत का हिस्सा 24 प्तिशतर था

और सन उन्नीस सौ में एक प्तिशतर परआ गया आखिर कारण क्या था?

अगर हमारे देश में उतना ही छुआछूत थे हमारे देश में रोजगार नहीं था तो फिर पूरे दुनिया के व्यापार में हमारा 24 प्रताशत का व्यापार कैसे था?

यह वामपंथी लंपट यह नहीं बताएंगे कि कैसे अंग्रेजों के नीतियों के कारण भारत में लोग एक ही साथ 3000000 लोग भूख से मर गए कुछ दिन के अंतराल में क्यों?

एक बेहद खास बात वामपंथी लंपट  या अंग्रेज दलाल कहते हैं इतना ही भारत समृद्ध था, इतना ही सनातन संस्कृति समृद्ध थी तो सभी अविष्कार अंग्रेजों ने ही क्यों किए हैं भारत के लोगों ने कोई भी अविष्कार क्यों नहीं किया?

उन वामपंथी लंपट लोगों को बताते चलें कि किया तो सब आविष्कार भारत में ही लेकिन उन लोगों ने चुरा करके अपने नाम से पेटेंट कराया। नहीं तो एक बात कि भारत आने से पहले अंग्रेजों ने कोई एक अविष्कार किया हो तो उसका नाम बताओ एवं थोड़ा अपना दिमाग लगाओ कि भारत आने के बाद ही यह लोग आविष्कार

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