( सरलता की महिमा )..

 (( सरलता की महिमा ))...

.


किसी परिवार में एक बालक का जन्म हुआ। धीरे-धीरे उसकी उम्र बढ़ती गई। 

.

बड़ा हुआ, 20 वर्ष की आयु हो गई। बड़ा सरल था, भोला-भाला, दिल का साफ था, उसमें कोई दुर्गुण नहीं था। 

.

दुर्गुण एक ही था उसमें बस, खाता बहुत था। जब खाने बैठ जाए तो उठने का नाम  ही नहीं लेता था खाता ही जाता था। 

.

परिवार के पांच आदमी जब तक भोजन करे तब तक वह अकेला ही खाता रहता था। 

.

अब ज्यादा खाने वाले से भी लोग परेशान हो जाते हैं। वह बड़ा विचित्र भी था। खाता जाता और बीच-बीच में कहता भी जाये 

.

"दाने दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम" 

.

तब उसे टोकते हुए किसी ने कहा -- "दाने दाने" पर नहीं तुम तो यह कहो कि -- "बोरे बोरे पर लिखा है खानहार का नाम।"

.

फिर किसी ने टोंकते हुए कहा कि -- बीच में पानी तो पी लिया करो... तो वह बोला -- बीच तो आए, जब बीच आयेगा तभी तो पानी पियेंगे।

.

अब जो इतना खाए  तो उसके घर वालों का तो क्या हाल होता होगा। 

.

अब घर वालों ने एक महात्मा से कहा कि -- महाराज इसे समझाओ, यह बहुत खाता है।

.

महात्मा बोले --- चिंता मत करो 

.

"यह उतना ही खाता है जितना इसका खाता है। खाते से ज्यादा कोई नहीं खाता है।"

.

पर घर वालों को बात समझ में नहीं आई कि महात्मा क्या बोल रहै हैं।

.

एक दिन घर वालों ने तंग आकर उसे घर से निकाल दिया, बोले -- चलो यहां से जाओ, निकलो ! खाते बहुत हो, पड़े रहते हो और कमाते भी कुछ नहीं हो, जाओ निकलो यहाँ से।

.

वह तो बड़ा सरल सीधा आदमी था, चल दिया।

.

लेकिन जाए तो जाए कहाँ ? थोड़ी दूर गया। फिर लौट कर आ गया।

.

घर वालों ने कहा -- तुम फिर लौट कर आ गये।

.

वह बोला -- शायद मुझे निकाल कर पछता रहे हों आप... महफिल में आ गया हूं इस ख्याल से।

.

घर वाले बोले -- कोई नहीं पछता रहे। तुम तो जाओ निकलो यहां से। अब क्या करे बेचारा, चल दिया।

.

जा रहा था। कुछ दूर चला तो देखा, मंदिर के बाहर एक महात्मा बैठे थे।

.

माथे पर तिलक लगाए, माला हाथ में लिए हुए, सीताराम- सीताराम सीताराम कर रहे थे, महात्मा जी अच्छे तंदुरुस्त, मोटे और हट्टे-कट्ठे भी थे।

.

उसने देखा, सोचा -- ये तो अच्छे खाते- पीते लगते हैं।

.

तब तक उनके दो-चार चेले और निकले, वह भी सब के सब मोटे-ताजे बढ़िया खाते पीते हट्टे-कट्टे लग रहे थे।

.

सोचने लगा -- अरे वाह ! यहां तो खाने को बहुत मिलता है और खाने का तो बड़ा आनंद है।

.

महात्माजी के पास गया और पूछा - महाराज आप कौन हैं ?

.

महाराज बोले -- हम इस मंदिर के सेवक हैं।

.

वह बोला -- अच्छा ! महंतजी हो आप महंत जी, अच्छा !

.

महाराज बोले -- हाँ !  

.

फिर उसने  पूछा -- और यह लोग कौन हैं ?

.

महाराज बोले -- यह चेले हैं हमारे।

.

उसने पूछा -- अच्छा ! क्या क्या करते हैं ?

.

महात्मा -- भगवान का भजन करते हैं।

.

उसने पूछा -- यहां कोई काम हो हमारे लायक।

.

महात्मा बोले -- काम कुछ नहीं, जो मन में आये सेवा करो बस, आराम से रहो और रामजी का भजन करते रहो। 

.

खाने-पीने की कोई कमी नहीं है। भगवान की कृपा है, खाओ-पियो राम-राम भजो और रहो।

.

वह बोला -- महाराज हमें चेला बना लो।

.

महात्मा बोले -- बन जाओ। कंठी डालो, तिलक लगाओ, चेला बनो, और रहो हमारे साथ, हमारे पास।

.

अब वह भी चेला बनकर वहीं महात्माजी के पास रहने लगा।

.

अब वह बड़ा खुश रहे और खूब खाये। 

.

अब महात्मा जी से पूछे -- कितनी पंगत होती हैं आपके आश्रम में ?

.

महात्मा -‐ पांच पंगते होती हैं।

.

वो बोला -- हम पांचों पंगतों में बैठ सकते हैं, कोई हर्ज तो नहीं ?

.

महात्मा बोले -- हर्ज तो नहीं, पर इतना खाते हो ?

.

वह बोला -- महाराज सब आपकी कृपा है। अब वह खूब खाएं और आराम से पड़ा रहे। 

.

अब एक दिन सवेरे-सवेरे, ना चूल्हे जले ना कोई खाना बने। वह इधर-उधर फिरे।

.

और जिधर देखे वहीं सब सीताराम - सीतारामजी का भजन करते हुए दिखें , भोजन बनाने वाले भी सीताराम सीताराम सीताराम करते हुए दिखें।

.

अब वह परेशान होकर गुरु जी के पास गया बोला -- 

.

गुरुजी क्या बात है ! आज चूल्हे जलते हुए नहीं दिख रहे हैं।

.

गुरूजी बोले -- आज एकादशी है, हम तुम्हें बताना ही भूल गए एकादशी के दिन अन्न नहीं खाना चाहिए और वैष्णव को तो व्रत करना चाहिए।

.

तुम हमारे शिष्य हो गए हो, वैष्णव  हो गए हो। तुम भी व्रत करो।

.

वह बोला -- गुरुजी ! चेला और भी तो होंगे, सबसे कराओ एकादशी, हमसे ना कराओ।

.

गुरूजी -- क्या ! तुमसे ना कराएं ! क्यों ? तो तुम इतने भूखे रहते हो ?

.

वह बोला -- हां ! गुरुजी; अगर आपने आज हमसे एकादशी करा ली तो द्वादशी तो हम देख ही नहीं पाएंगे।

.

गुरुजी बोले -- अच्छा,  तो एक उपाय है। वैसे एकादशी के दिन किसी को अन्न तो नहीं खाना चाहिए पर..

.

गुरूजी ने पूछा -- अच्छा तो, तुम बना तो लोगे भोजन ?

.

बोला -- अरे  'मरता क्या नहीं करता, हम तो सब बना लेंगे।

.

गुरूजी ने भंडारी से कहा --  इसे सामान दे दो।

.

और उससे कहा -- नदी किनारे जाकर पेड़ के नीचे बेठना। वहीं भोजन बनाना और देखो, भगवान को भोग लगाना तब ही भोजन पाना।

.

भंडारी ने आलू, गुड़, घी, रामरस, आटा - दाल सब दे दिया।

.

वह सब सामान की पोटली बनाकर सिर पर रखकर सब लेकर चल दिया।

.

अब पहुँचा वहाँ -- पहली बार भोजन बनाया। बड़ी देर में भोजन बना।

.

भूख लग रही थी तगड़ी।

.

तभी इतने में याद आया कि -- भगवान को भी भोग लगाना है।

.

सो ऐसे ही कहने लगा कि -- देखो भगवान !! मंत्र उपाय मैं कुछ जानता नहीं हूँ। इसलिए आप ऐसे ही आ जाइये।

.

और बुलाने लगा भगवान को -- 

.

राजा राम आइए, प्रभु राम आइए, मेरे भोजन का भोग लगाइए,

.

राजा राम आइए, प्रभु राम आइए, मेरे भोजन का भोग लगाइए  मेरे भोजन का भोग लगाइए।

.

राजा राम आइए प्रभु राम आइए मेरे भोजन का भोग लगाइए मेरे भोजन का भोग लगाइए। मेरे भोजन का भोग लगाइए। 

.

इस तरह से एसे भगवान को बुलाया, पर भगवान जी आये नहीं।  भगवान ने वैसे ही भोग लगा लिया जैसे वहाँ लगा रहै हैं। आए ही नहीं।

.

अब उसको लगा कि आए नहीं तो गुरुजी क्या कहेंगे और हम भूखे रहेंगे। तो बोला -- 

.

आचमनी अरधान आरती यहाँ यही महमानी, आचमनी अरधान आरती यहाँ यही महमानी।

.

रूखी रोटी पाओ प्रेम से, रूखी रोटी पाओ प्रेम से, पियो नदी का पानी। रूखी रोटी पाओ प्रेम से, पियो नदी का पानी।

.

राजा राम आइए प्रभु राम आइए मेरे भोजन का भोग लगाइए। राजा राम आइए प्रभु राम आइए मेरे भोजन का भोग लगाइए।

.

यहाँ तो यही है -- रूखी-सूखी रोटी और नदी का पानी। भगवान जी तो फिर भी नहीं आये।

.

फिर वह बोला -- हम समझ गए इसलिए नहीं आ रहे होगे कि यहाँ रूखी - सूखी रोटियां खाना पड़ेगा और नदी का पानी पीना पड़ेगा। 

.

और अब यह रूखा-सूखा भोजन करने कौन जाये। यहाँ मंदिर में ठाठ हैं आपके, वहा सब कुछ मिलता है आपको।

.

तो भक्त बोला -- मंदिर के भरोसे में मत रहना, मंदिर से प्राण बचाकर तो हम ही आये हैं। 

.

भूल करोगे यदि तज दोगे, भोजन रूखे - सूखे। भूल करोगे यदि तज दोगे, भोजन रूखे - सूखे 

.

एकादशी आज मंदिर में, एकादशी आज मंदिर में बैठे रहोगे भूखे। एकादशी आज मंदिर में बैठे रहोगे भूखे।

.

राजा राम आइए प्रभु राम आइए मेरे भोजन का भोग लगाइए। 

.

और जो कहा आज मंदिर में एकादशी है भूखे बैठे रहोगे इसलिए आ जाओ यहां।

.

और जो यह कहा भगवान इस बात पर बड़े प्रसन्न हुए - बैठे रहोगे भूखे, और

भगवान तुरंत प्रकट हुए। 

.

लेकिन भगवान जी भी बड़े कोतुकी हैं। राम जी अकेले नहीं आए।

.

नीलांबुज श्यामल कोमलांगम सीता समारोपित बामभागम।

पाणौ महासायक चारूचापम नमामी रामं रघुवंश नाथम।

.

राम वाम दिशीजानकी.. श्री राम जी के संग सीताजी को देखा भगवान की मनमोहक छवि को देखकर आनंदित हो गया।

.

चरणों में सिर रखकर प्रणाम किया -- जय हो।

.

फिर एक दूसरे ही क्षण कभी भगवान को देखे कभी रोटियों को देखे।

.

कभी रोटियों को देखें फिर वह भगवान को देखें।

.

भगवान ने कहा -- क्या हुआ ?

.

कहा -- नहीं नहीं, कुछ नहीं।

.

फिर भी, फिर भी।

.

बोला -- नहीं, नहीं, कुछ नहीं।

.

आप तो आराम से पाओ, जो होगा वह देखा जाएगा।

.

तो होगा,  क्या ??

.

गुरूजी ने कहा था -- भगवान जी को भोग लगाना, तो हम सोच रहे थे एक ही आएंगे भगवान। आप तो दो आए हैं।

.

तो कोई बात नहीं पूरी एकादशी तो नहीं हुई थोड़ी बहुत एकादशी तो करा ही दोगे।

.

लेकिन आप लोग इतने प्रिय लगते हो कि, चलो पाओ पाओ।

.

भगवान ने प्रसाद पाया, सीतासहित।

.

भक्तराज जो था उसको भी प्रसाद मिला। भगवान जाने लगे।

.

तो भक्त बोला -- अगली एकादशी को जल्दी आ जाना, ज्यादा परेशान मत करना, भूख लगती है, आप देर करते हो।

.

भगवान बोले -- हम तैयार रहेंगे और जल्दी आ जाएंगे। 

.

अब अगली एकादशी आई।

.

तो गुरुजी ने कहा -- बच्चा आज भी जाओगे ?

.

जाना ही पड़ेगा गुरु जी इसके अलावा और उपाय क्या है।

.

ठीक है, सामान ले जाओ।

.

लेकिन गुरु जी थोड़ा बढ़वा दो सामान।

.

क्यों?

.

आपने एक ठाकुर जी का कहा था, वहां पर तो दो आते हैं।

.

गुरुजी ने समझा भूखा रहा होगा, भगवान के नाम का तो बहाना बना रहा है इसलिए सामान बढ़वा दिया। अब सामान लेकर गया।

.

अहा हा हा हा !! भोजन बनाया।

.

अब लगा पुकारने -- 

.

राजा राम आइए सीता राम आइए मेरे भोजन का भोग लगाइए। राजा राम आइए सीता राम आइए मेरे भोजन का भोग लगाइए।

.

राजा राम आइए प्रभु राम आइए सीता राम आइए मेरे भोजन का भोग लगाइए। भोजन का भोग लगाइए।

.

और जो भक्त ने पुकारा -- भगवान मानो प्रतीक्षा ही कर रहे थे। प्रकट हो गए हैं लेकिन

.

रामबाम दिसी जानकी, लखन दाहिनी ओर। भगवान श्री सीताराम, श्री लक्ष्मण जी प्रकट हो गए।

.

और जो इसने देखा, तीनों को।

.

प्रणाम तो कर लिया लेकिन फिर देखे रोटियों की तरफ फिर इनकी तरफ देखे। फिर माथा खुजाए।

.

भगवान ने हँसते हुए कहा -- क्यों, क्या हुआ ?

.

बोले -- नही कुछ नहीं।

.

बोले -- अब जो होगा सो होगा आप तो प्रसाद पाओ।

.

भगवान जी ने कहा -- बात क्या है ?

.

बोला -- कुछ नहीं।

.

पहले दिन हमने सोचा एक भगवान आएंगे, सो आप तो दो आ गए।

.

दो का इंतजाम किया, सो आज आप तीन आ गए। एक बात पूछें भगवान !

.

पूछो ?

.

भगवान जी यह आपके साथ कौन हैं ? 

.

भगवान ने कहा -- यह हमारे भाई हैं छोटे भाई हैं -  लक्ष्मण। छोटे भाई हैं। भाई हैं हमारे।

.

भक्त बोला -- अच्छा, भाई हैं !! सगे भाई हैं या ऐसे ही। हमें ऐसे लगे थोड़ी दूर के हैं।

.

भगवान बोले -- नहीं नहीं यह हमारे सगे, सगे भाई हैं।

.

अच्छा सगे हैं, तो ठीक है। लेकिन नाराज न होना, एक बात पूछें ??

.

भगवान जी -- क्या ?

.

हमने ठाकुर जी के भोग का ठेका लिया है कि ठाकुर जी के खानदान वालों का ??

.

भगवान जी खिलखिला कर हँसने लगे, सीता मैया भी मुस्कुरा कर हंसने लगे।

.

लक्ष्मण जी को लगे कि भगवान अच्छी जगह ले आये, आते ही क्या स्वागत हो रहा है।

.

बोला -- कोई बात नहीं। आप हमैं लगते तो इतने अच्छे हो कि क्या बताएं। आप तो पाओ प्रसाद पाओ।

.

तीनों को बैठाया और प्रसाद पवाया। जो बचा सो खुद ने पाया।

.

भगवान जब जाने लगे, तो चरणों में सिर रखकर बोला -- एक बात बताओ।

.

क्या ??

.

अगली एकादशी को कितने आओगे, अभी से बता दो। 

.

भगवान ने कहा -- हम आ जाएंगे आ जाएंगे। अंतर्ध्यान हो गए।

.

अब बड़ा परेशान। वापस लौटा। 

.

किसी तरह फिर दिन गुजरे। अगली एकादशी आयी।

.

महंतजी ने पूछा --- आज जाओगे ?

.

बोले ---जाना ही पड़ेगा, यहां कुछ मिलता नहीं है, वहां अलग परेशानी है।

.

गुरूजी बोले -- वहां क्या परेशानी है ??

.

बोला -- आपके ठाकुर जी हर एकादशी को बढ़ते जा रहे हैं। अब आज पता नहीं कितने आयेंगे ?

.

हमने ठाकुर जी का भोग का ठेका लिया है कि उनके पूरे खानदान का ? हर एकादशी को आ जाते हैं। 

.

कम से कम 11 सैर आटा कर दो और उसी के हिसाब से गुड़ आलू मिर्ची-मसाला रामरस, घी यह सब कर दो।

.

गुरु जी समझ गए कि इतने आटे का क्या करेगा यह इतना तो खा तो सकता नहीं होगा। 

.

जरूर बेचता होगा। हम पीछे से जाकर पता लगाएंगे।

.

सामान दिला दिया और बोले - जाओ।

.

ले गया।

.

पूरी गठरी सिर पर रख कर ले गया।

.

रख दी पेड़ के नीचे गठरी सामान की।

.

आज उसने चतुराई की। भोजन बनाया ही नहीं, नहीं बनाया।

.

सोचने लगा -- पहले बुला कर देख लो, कितने आएंगे, फिर बनाएंगे।

.

अब भोजन बिना बनाए ही लगा पुकारने।

.

राजा राम आइए सीता राम आइए लक्ष्मण राम आइए मेरे भोजन का भोग लगाइए।

.

राजा राम आइए सीता राम आइए लक्ष्मण राम आइए मेरे भोजन का भोग लगाइए।

.

मेरे भोजन का भोग लगाइए। मेरे भोजन का भोग लगाइए।

.

राजा राम आइए सीता राम आइए लक्ष्मण राम आइए मेरे भोजन का भोग लगाइए। मेरे भोजन का भोग लगाइए।

.

जो प्रार्थना की। मानो भगवानजी तो प्रतीक्षा कर रहे हो।

.

बैठ विपिन में भक्त ने, कीन्ही प्रेम पुकार। तो ता क्षण में प्रकट हो, दिव्य राम दरबार।

.

राम जी का दरबार पूरा प्रकट हुआ। श्री सीताराम, श्री लक्ष्मणजी, भरतजी, शत्रुघ्नजी, हनुमान जी सभी प्रकट हो गए।

.

और जो इतने जनों को देखा !! चरणों में प्रणाम किया -- जय हो आ गये ! जय हो।

.

आज तो हद हो गई.. इतने !!!! 

.

हर एकादशी को एक-एक बढ़ते थे आज तो  इतने !!

.

लेकिन... मेरी भी एक प्रार्थना सुनो।

.

भगवान बोले -- क्या, बताओ।

.

वो बोला -- आज मैंने भी भोजन नहीं बनाया। वो रखा है 'सामान'। अपना बनाओ और अपना पाओ

.

भगवान बोले -- तो तुम क्यों नहीं बना रहे हो ??

.

वह बोला -- जब हमें मिलना ही नहीं है तो बनाए कायको ?

.

भोजन मुझसे नहीं बनत बनाए हो.. भोजन मुझसे नहीं बनत बनाए। भोजन नाथ बनावहु अपने बहुत दिनन नही पाये.. भोजन मुझसे नहीं बनत बनाये।

.

ये भोजन मुझसे नहीं बनता आप बनाओ 

.

प्रथम दिवस भोजन के हित आसन जब मैंने लगाई... उदर न भर सको सीय जब सम्मुख आयी.. फिर विनीत आये भाई पर भाई.. निराहार ही रहूं आज मोहे पड़त दिखाइए 

.

आज तो ऐसा लग रहा है कि भूखा ही रहना पड़ेगा।

.

और तुम नहीं तजत सुबानी आपनी.. हम केते समझाए.. नर नारी की कौन कहे एक वानर हूं संग लाए। भोजन मोसे नहीं बनत बनाएं।

.

भोजन मोसे नहीं बनत बनाएं। चलिए आप बनाओ।

.

भगवान ने कहा -- बनाओ भक्त नाराज है तो क्या करें ?

.

अब, श्री भरत जी भंडारे बनाने लगे, श्री भरत जी भंडारे बनाने लगे।

.

चुनके लकड़ी श्रीलखनलाल लाने लगे, श्री भरत जी भंडारे बनाने लगे।

.

पोंछते पूछ से अंजनेय चौंका को.. पीछे हाथों से चौका लगाने लगे।

.

श्री भरत जी भंडारे बनाने लगे .. श्री भरत में भंडारे बनाने लगे। श्री भरत जी भंडारे भी बनाने लगे

.

चेते चूल्हे इधर, चेते चूल्हे इधर और उधर शत्रुघ्न साग भाजी अमनिया कराने लगे। श्री भरत जी भंडारे बनाने लगे.. श्री भरत जी भंडारे बनाने लगे, श्री भरत जी भंडार बनाने लगे। 

.

अब श्री भरतजी भंडार बनावें, लक्ष्मणजी लकड़ी लावें। शत्रुघ्नजी साग सब्जी अमिनया करावें, हनुमान जी चौका साफ करें और ये पेड़ के नीचे आँख बन्द करके बैठे रहें। 

.

भगवान जी ने कहा कि -- आंख बंद काहे किए हो, खोलो तो। 

.

वह बोला -- काहे को खोलें।

.

जब हमें खाने को मिलेगा ही नहीं तो दूसरे को हम खाते हुए भी तो नहीं देख सकते।

.

अब जिस रसोई में सीता मैया बैठी हों। उन्हैं देखकर बड़े-बड़े सिद्ध संत भी वहां आने लगे, कहने लगे मैया हमको भी प्रसाद मिले हमको भी।

.

बड़े-बड़े संत प्रकट होने लगे। अब उनकी जो आवाजों सुनी, इसने आँख खोली

.

जो देखा इधर भी महात्मा उधर भी महात्मा !! सो माथा पीट के बोला सो थोड़ा बहुत मिलता भी तो यह भी अब मिलने नहीं देंगे।

.

पा के संकेत शक्ति का जत्थे वहाँ अष्टसिद्धि और नवनिधि के आने लगे।

श्री भरत जी भंडारे बनाने लगे.. श्री भरत जी भंडार बनाने लगे। 

.

अब गुरुदेव आए देखने, कि क्या रहा है। जो देखा, पेड़ के नीचे आँख बंद करके बैठा है। सामने सामान रखा है, आंसू टपके रहे है।

.

गुरूजी ने पूछा -- बेटा भोजन नहीं बना रहे हो ??

.

देखा, अरे ! आप आ गये गुरूजी। चरणों में प्रणाम किया।

.

फिर बोला -- देखो आपने कितने भगवान लगा दिए हमारे पीछे। मंदिर में तो नहीं हुई पर यहां एकादशी पूरी हो रही है।

.

अब गुरु जी को कोई दिखे ही नहीं। 

.

तो भगवान से बोला -- हमारे गुरूजी जी को भी दिखो, नहीं तो यह हमे झूठा मानेंगे।

.

भगवान बोले -- उन्हें नहीं दिखेंगे हम।

.

उसने पूछा -- क्यों ? फिर बोला -- ये हमारे गुरुदेव हैं, हम से अधिक योग्य हैं इन्हें भी दर्शन दो।

.

भगवान बोले --  तुम्हारे गुरुदेव हैं, तुमसे अधिक योग्य हैं।

.

लेकिन तुम्हारे जितने सरल नहीं हैं और हम सरल को मिलते हैं। 

.

गुरु जी ने पूछा -- क्या कह रहे हैं भगवान जी ?

.

वह बोला -- भगवान कह रहे हैं कि सरल को मिलते हैं। और आप सरल नहीं हो।

.

गुरूजी रोने लगे। सरल तो नहीं थे तरल हो गए। आंसू बरसने लगे और जब सरल होकर रोने लगे 

.

तब भगवान प्रकट हो गये। और प्रकट होकर गुरुजी ने दर्शन किया और गुरुजी ने एक ही बात कही 

.

हम सदा से सुनते आये हैं कि -- गुरुजी के कारण शिष्य को भगवान मिलते हैं पर आज शिष्य के कारण गुरु जी को भगवान मिले हैं।

.

यह है सरलता की महिमा और सरल शब्द का मतलब हम ऐसे बताते हैं।

.

स से - सीताजी 

र से -- रामजी 

ल से --- लक्ष्मण जी। 

और जिसके हृदय में यह तीनों बसे हों वही सरल है।

.

सरल को भगवान मिलते हैं क्योकी जहां सरलता है वहीं तरलता है और जहां तरलता है वहीं सरलता है, स्नेह है, वहीं प्रेम है।

Politicsexpertt Vlogspot 👉

~~~~~~~~~~~~~~~~~