भगवान कृष्ण एवं दानवीर योद्धा कर्ण संवाद....

भगवान कृष्ण एवं दानवीर योद्धा कर्ण संवाद....


महाभारत में, दानवीर योद्धा कर्ण भगवान श्री कृष्ण से पूछते हैं-
"मेरी माँ ने मुझे उसी क्षण छोड़ दिया जब मैं पैदा हुआ था, क्या यह मेरी गलती है कि मैं एक नाजायज बच्चा पैदा हुआ?
मुझे गुरु द्रोणाचार्य से शिक्षा नहीं मिली क्योंकि मुझे क्षत्रिय नहीं माना जाता था।
गुरु परशुराम ने मुझे सिखाया लेकिन फिर मुझे सब कुछ भूल जाने का श्राप दिया जब उन्हें पता चला कि मैं क्षत्रिय कुंती का पुत्र हूं।
केवल संयोगवश एक गाय को मेरा बाण लगा और उसके स्वामी ने मुझे श्राप दिया जबकि मेरा कोई दोष नहीं था।
द्रौपदी के स्वयंवर में मेरी बदनामी हुई थी।
यहां तक ​​कि कुंती ने भी अपने अन्य पुत्रों को बचाने के लिए ही मुझे सच बताया।
मुझे जो कुछ भी राज और सम्मान मिला वह दुर्योधन के कारण मिला।
तो मैं उनका पक्ष लेने में गलत कैसे हूँ?"
भगवान श्री कृष्ण जवाब देते हैं, "कर्ण, मैं एक जेल में पैदा हुआ था।
मेरे जन्म से पहले ही मौत मेरा इंतजार कर रही थी।
जिस रात मैं पैदा हुआ था, मैं अपने जन्म माता-पिता से अलग हो गया था।
बचपन से तुम तलवारों, रथों, घोड़ों, धनुष-बाणों का शोर सुनते-सुनते बड़े हुए हो, चलना सीखने से पहले ही मेरे जीवन पर गायों के झुंड, गोबर, और मुझे मारने के कितने प्रयास किये गये!
कोई सेना नहीं, कोई शिक्षा नहीं। मैं लोगों को यह कहते हुए सुन सकता था कि मैं उनकी सभी समस्याओं का कारण हूं।
जब तुम सभी को तुम्हारे शिक्षकों द्वारा वीरता के लिए सराहा जा रहा था, तब मुझे कोई शिक्षा भी नहीं मिली थी।मैंने 16 साल की उम्र में ही ऋषि संदीपनि के गुरुकुल में प्रवेश लिया था!
तुमने अपनी पसंद की स्त्री से विवाह किया। मुझे वह स्त्री नहीं मिली जिससे मैं प्रेम करता था।
जरासंध से बचाने के लिए मुझे अपने लोगों को यमुना के किनारे से दूर समुद्र के किनारे ले जाना पड़ा। मुझे भागने के लिए कायर कहा गया !!
यदि दुर्योधन युद्ध जीतता है तो तुम्हें बहुत श्रेय मिलेगा। धर्मराज के युद्ध जीतने पर मुझे क्या मिलेगा? युद्ध और सभी संबंधित समस्याओं के लिए केवल दोष....
एक बात याद रखो कर्ण, जीवन में हर किसी के सामने चुनौतियां होती हैं।
जीवन किसी पर भी उचित और आसान नहीं है!
लेकिन सही क्या है तुम्हारे अन्तर्मन को ये पता होता है। चाहे हमारे साथ कितना भी अन्याय हुआ हो, हम कितनी भी बार बदनाम हुए हों, कितनी भी बार हम असफल हुए हों, महत्वपूर्ण यह है कि हमने उस समय कैसी प्रतिक्रिया दी।
जीवन का अन्याय हमें गलत रास्ते पर चलने की अनुमति नहीं देता...
जीवन कुछ बिंदुओं पर कठिन हो सकता है, लेकिन भाग्य हमारे द्वारा पहने जाने वाले जूतों से नहीं बल्कि हमारे द्वारा उठाए गए कदमों से बनता है!

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