महादेवी वर्मा...

 एक बार लेखिका महादेवी वर्मा को कविता-पाठ करने पर पुरस्कार स्वरूप चाँदी का सुंदर कटोरा मिला था


 इसी समय लेखिका ने गाँधीजी को अपना चाँदी का कटोरा दिखाया। गाँधी जी ने देशहित में वह कटोरा माँगा, जिसे लेखिका ने सहर्ष दे दिया। महादेवी वर्मा और उनके सहपाठी छोटी उम्र में से ही, अपने जेब खर्च के पैसे राष्ट्रीय आंदोलन में आर्थिक मदद के रूप में दे दिया करते थे। वह गाँधीजी को एक प्रेरणा के रूप में देखती थी और जब भी उन्हें मार्गदर्शन की ज़रूरत होती, वह बापू से ही मिला करती।

यह 1932 की बात है, जब ब्रिटिश हुकूमत से मुक्ति पाने को भारतीयों की जंग छिड़ी थी। तभी महादेवी वर्मा ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत में एमए पास किया था। जब ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ देश में आजादी की बिगुल बज रही थी, वहीं महादेवी को ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के लिए छात्रवृत्ति मिली थी। विदेश जाने को लेकर असमंजस में थीं। मार्गदर्शन लेने महात्मा गाँधी से मिलने अहमदाबाद गईं। गाँधी से पूछा 'बापू मैं विदेश जाऊं या नहीं? कुछ देर मौन धारण करने के बाद गाँधीजी बोले 'अंग्रेजों से हमारी लड़ाई चल रही है और तू विदेश जाएगी? अपनी मातृभाषा के लिए काम करो और बहनों को शिक्षा दो।' यहीं से महादेवी के जीवन की राह बदल गई और उन्होंने स्त्री शिक्षा पर काम करना शुरू किया।

वैसे तो महादेवी वर्मा की हर रचना अपने आप में उत्कृष्ट है, "मै अनंत पथ में लिखती जो" यह कविता एक अलग ही छाप छोड़ती है -

मै अनंत पथ में लिखती जो

सस्मित सपनों की बाते

उनको कभी न धो पायेंगी

अपने आँसू से रातें!

उड़् उड़ कर जो धूल करेगी

मेघों का नभ में अभिषेक

अमिट रहेगी उसके अंचल-

में मेरी पीड़ा की रेख!

तारों में प्रतिबिम्बित हो

मुस्कायेंगी अनंत आँखें,

हो कर सीमाहीन, शून्य में

मँडरायेगी अभिलाषें!

वीणा होगी मूक बजाने-

वाला होगा अंतर्धान,

विस्मृति के चरणों पर आ कर

लौटेंगे सौ सौ निर्वाण!

जब असीम से हो जायेगा

मेरी लघु सीमा का मेल,

देखोगे तुम देव! अमरता

खेलेगी मिटने का खेल

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