परमार शब्द का अर्थ है शत्रु को मारने वाला।

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परमार शब्द का अर्थ है शत्रु को मारने वाला।

चंद्रवरदाई की पृथ्वीराज रासो में परमारो की उत्पत्ति अग्निकुंड से बताई गई है उदयपुर प्रशस्ति पिंगल सूत्र वृद्धि तेजपाल अभिलेख में परमारो को क्षत्रिय कुलीन बताया गया है। 


परमारो में 

१.आबु के परमार 

२.मारवाड़ के परमार,

३. सिंध के परमार,

गुजरात के परमार

५. वागड़ के परमार,

६. मालवा के परमार आदि शाखाएं हुई। 


इनमे से आबू के प्रमार व मालवा के प्रमार प्रमुख है। 


आबू के परमार वंश का मूल पुरुष धूमराज के नाम से विख्यात है लेकिन इनकी वंशावली उत्पलराज से प्रारंभ होती है। सिंधुराज परमार एक प्रतापी शासक हुआ जिसने "मरूमंडल का महाराजा"  की उपाधि ग्रहण की। 


मालवा के परमारों में मुंज परमार बड़ा प्रतापी शासक हुआ जिसने हूणों को परास्त किया। इसे "वाकपति राज तथा उत्पल राज " नामों से भी जाना जाता है।  इसने अमोघवर्ष पृथ्वीवल्लभ और श्रीवल्लभ की उपाधि धारण की। 


कवियों तथा विद्वानों का आश्रय दाता होने के कारण इन्होने " कविव्रर्ष "की उपाधि धारण की।  लेखक पद्मगुप्त ने अपनी पुस्तक में इसे  "नवसाहसांक " की उपाधि दी। 


धारानगरी के राजा भोज ने धारानगरी में सरस्वती कंथाभरण नामक पाठशाला बनवाई है सरस्वती कंठा भरण उपाधि से विभूषित हुए। 


यह अपनी विद्वता के कारण "कविराज" की उपाधि से प्रख्यात थे। अबुल फजल के अनुसार भोज की राज्यसभा में 500 विद्वान रहते थे। 


#महान_राजपूत____सम्राट__भोज__परमार 


राजा भोज परमार जिनसे बडा राजपूत क्षत्रिय राजा पिछले एक हजार वर्षो में नहीं हुआ । राजा भोज का जन्म मध्य प्रदेश के मालवा राज्य की एतिहासिक नगरी उज्जैन में हुआ । उनके पिता का नाम सिंधुराज था । राजा भोज बचपन से ही विद्वान थे उन्होंने महज 8 वर्ष की उम्र में संपूर्ण वेद पुराण का ज्ञान प्राप्त कर लिया था । राजा भोज जब 15 वर्ष के थे तब उन्हें मालवा का राजा बनाया गया राजा भोज जब सिंहासन पर बैठे तब उन्होंने पुरे देश का मानचित्र देखा और यह भी देखा की देश 57 भागों में बंटा हुआ था उस समय राजा भोज ने अंखड भारत को एक करने का बिडा उठाया राजा भोज ने भारतवर्ष के सभी राजाओं को संदेश भेजा की सभी देशवासियों को एक हो कर देश को बचाना ही होग 

तब कई राजाओं ने राजा भोज का विरोध किया तब राजा भोज ने देश धर्म की रक्षा के लिए तलवार उठाई और तब जन्म हुआ इतिहास के सबसे बडे योद्धा राजा भोज का। 

विश्वविजेता सिकन्दर के सेनापति पश्‍चिमोत्तर भारत के यूनानी शासक सेल्यूकस निकेटर को पराजित कर एरिया (हेरात), अराकोसिया (कंधार), जेड्रोसिया पेरोपेनिसडाई (काबुल) के भू-भाग को अधिकृत कर विशाल मौर्य साम्राज्य की स्थापना करने वाले चंद्रगुप्त मौर्य क्षत्रियों के इसी परमार वंश की मौर्य शाखा  से सम्बंधित थे। 

(संस्कृतिकरण के शिकार आज के मुराइयों का हम मौर्य ठाकुरों से कोई सम्बंध नहीं है) 


परमारों की इसी मौर्य शाखा के राजपूत राजा चित्रांगद मौर्य ने 6वीं सदी में चित्तौड़ दुर्ग का निर्माण करवाया था जिसे अरबों के काल गुहिल कालभोज(बप्पा रावल) ने 7 वीं सदी में मौर्य राजपूतों से विजित कर मेवाड़ में गुहिल(सिसोदिया) राजपूतों का प्रभुत्व स्थापित किया जो गुहिल राणा कुंभा, गुहिल महाराणा प्रताप जैसे वीरों के प्रताप से पिछले चौदह सौ वर्षों से यथावत है। 


गुहिलों से मेवाड़ गंवाने के उपरांत परमार वंश की शाखा मौर्य राजपूतों ने दमन और दीव, सौराष्ट्र, निमाड़(मध्यप्रदेश), आगरा, चंबा(हिमांचल प्रदेश) जैसे स्थानों में शरण ली और आज भी इन क्षेत्रों में मौर्य ठाकुर बड़ी मात्रा में पाए जाते हैं। 


राजा भोज ने अपने जीवन में हिंदुत्व की रक्षा के लिए 5 हजार से भी ज्यादा युध्द लडे आज तक किसी ने इतने युद्ध नहीं लडे ।

राजा भोज ने सन् 1000 ई. से 1055 ई. तक राज्य किया। इनकी विद्वता के कारण जनमानस में एक कहावत प्रचलित हुई कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तैली..... 


राजा भोज बहुत बड़े वीर, प्रतापी, पंडित और गुणग्राही थे। इन्होंने अनेक देशों पर विजय प्राप्त की थी और कई विषयों के अनेक ग्रंथों का निर्माण किया था। ये बहुत अच्छे कवि, दार्शनिक और ज्योतिषी थे। सरस्वतीकंठाभरण, शृंगारमंजरी, चंपूरामायण, चारुचर्या, तत्वप्रकाश, व्यवहारसमुच्चय आदि अनेक ग्रंथ इनके लिखे हुए बतलाए जाते हैं। इनकी सभा सदा बड़े बड़े पंडितों से सुशोभित रहती थी। 


जब भोज जीवित थे तो कहा जाता था- 


अद्य धारा सदाधारा सदालम्बा सरस्वती।

पण्डिता मण्डिताः सर्वे भोजराजे भुवि स्थिते॥

(आज जब भोजराज धरती पर स्थित हैं तो धारा नगरी सदाधारा (अच्छे आधार वाली) है; सरस्वती को सदा आलम्ब मिला हुआ है; सभी पंडित आदृत हैं।) 


1 भोज चरित्र के अनुसार राजा भोज ने चालूक्य राज्य के कल्याणी राजा को युद्ध में मारा क्योंकि वो देश को एक करने के राजा भोज के अभियान का विरोधी था । 


2 धुआरा प्रंसति के अनुसार राजा भोज ने कलचूरी राजा गंगयादेव को हराया 


3 उदयपुर प्रसति के अनुसार महाराजा भोज ने उडीसा के राजा इंद्र दत्त को हराया जो कि उडीसा के सबसे ताकतवर राजा थे उन्हें भी महाराजा भोज ने हराया । 


4 धुआरा प्रसति के अनुसार राजा भोज ने लता नगर के कीर्ती राजा को हराया था 


5 राजा भोज ने महाराष्ट्र के कोकंण मुंबई सहित अनेक राजाओं को हराया । 


6 कन्नौज शहर से प्राप्त हुए दस्तावेजों के अनुसार राजा भोज ने संपूर्ण उत्तर भारत बिहार सभी राज्य को हराया था 


7 ग्वालियर में स्थित सांस बहू लिपि के अनुसार ग्वालियर के राजा कीर्तीराज को हराया था । 


8 राजा भोज से राजपूताना के चौहान राजा ने भी युद्ध लडा पर वो राजा भोज से हारे गये इसी तरह राजा भोज ने पुरे राजपूताने पर राज्य किया । 


9 राजा भोज ने चित्रकूट के किले को जीता और चित्रकूट की रक्षा की । 


10 राजा भोज ने मोहम्मद गजनवी की सेना से युद्ध लडा और भारत के कई राजाओं की सहायता की गजनवी से लडते हुए ।

महमूद गजनवी के दूसरे बेटे मसूद ने अपने बड़े भाई मुहम्मद को अंधा करके राज्य छीन लिया। मसूद ने 1038 ई. में हांसी पर हमला कर ब्राम्हणों और क्षत्रियों की निर्मम हत्या करके मंदिर तहस-नहस कर दिए, जिसके कुछ समय बाद मसूद का बेटा मौदूद हांसी में नियुक्त हुआ। 


राजा कुमारपाल तोमर, राजा भोज परमार, कलचुरि कर्ण, नाडौल के अणहिल्ल चौहान की सम्मिलित राजपूत सेनाओ ने एक-एक करके हांसी, थानेश्वर, नगरकोट को मौदूद की फ़ौज से मुक्त करा लिया। 


राजा भोज ने थांनेश्वर , हांसी नगर , कोटा को मुस्लिम राजाओं की गुलामी से छुडाया और हिन्दू शासन की स्थापना की । 


कहते हैं कि विश्ववंदनीय महाराजा भोज माँ सरस्वती के वरदपुत्र थे! उनकी तपोभूमि धारा नगरी में उनकी तपस्या और साधना से प्रसन्न हो कर माँ सरस्वती ने स्वयं प्रकट हो कर दर्शन दिए। माँ से साक्षात्कार के पश्चात उसी दिव्य स्वरूप को माँ वाग्देवी की प्रतिमा के रूप में अवतरित कर भोजशाला में स्थापित करवाया।राजा भोज ने धार, माण्डव तथा उज्जैन में सरस्वतीकण्ठभरण नामक भवन बनवाये थे। भोज के समय ही मनोहर वाग्देवी की प्रतिमा संवत् १०९१ (ई. सन् १०३४) में बनवाई गई थी। गुलामी के दिनों में इस मूर्ति को अंग्रेज शासक लंदन ले गए। यह आज भी वहां के संग्रहालय में बंदी है। 


राजा भोज के राज्य मालवा में उनके होते हुए कोई भी विदेशी कदम नही रख पाया वहीं राजा भोज ने सम्राट बन ने के बाद पुरे देश को सुरक्षित कर महान राज्य की स्थापना की राजा भोज का साम्राज्य अरब से लेकर म्यांमार जम्मू कश्मीर से लेकर श्रीलंका तक था राजा भोज बहुत महान राजा थे । 


राजा भोज द्वारा बसाए गये एतिहासिक शहर - भोपाल जो पहले भोजपाल था , धार , भोजपुर सहित 84 नगरों की स्थापना राजा भोज ने की । 


राजा भोज द्वारा निर्मित देश का सबसे बडा तालाब भोजताल जो मध्य प्रदेश के भोपाल ( भोजपाल ) में स्थित है इस तालाब के पानी से ही भोपाल अपनी प्यास बुझाता है ।

राजा भोज द्वारा निर्मित मंदिर - विश्व का सर्वश्रेष्ठ मंदिर माँ सरस्वती मंदिर भोजशाला जहाँ की सरस्वती माँ की प्रतिमा लंदन म्यूजियम में कैद है , वही सोमनाथ मंदिर , उज्जैन महाकाल मंदिर , विश्व का सबसे बडा ज्योतिरलिंग भोजेशवर मंदिर मध्य प्रदेश के भोजपुर में स्थित 18 फीट का भव्य लिंग , केदारनाथ मंदिर रामेश्वरम महादेव मन्दिर चित्तोड़ मे समधिएश्वर महादेव मंदिर सहित 10 लाख से ज्यादा मंदिरों का निर्माण मालवा नरेश भारत सम्राट महाराजा भोज ने करवाये । 


राजा भोज ने 'समरांगण सूत्रधार , सरस्वती कंठाभरण सिद्धांत समूह, राज मार्तंड, योगसूत्रवृति, विद्याविनोद, युक्तिकल्पतरू, आदित्यप्रताप सिद्धांत और आयुर्वेद सर्वस्व आदि ग्रंथों की रचना की।  भोज की मृत्यु पर पंडितों को महान दुख हुआ। उनकी मृत्यु पर यह कहावत प्रचलित हो गई कि - 


" अद्द: धारा निराधारा निरालंबा सरस्वती " अर्थात धारा नगरी में विद्या और विद्वान दोनों निराश्रित हो गए। 


सारांश:

परमार नरेश महान कला प्रेमी, विद्वान तथा भवन निर्माता थे। उनके काल में बने अनेक शिव, विष्णु, ब्रह्मा, सूर्य, मातृदेवी, गणेश, कार्तिकेय, कुबेर, दुर्गा आदि देवी-देवताओं के मंदिर एवं मूर्तियां प्राप्त होती हैं। उस काल में अनेक जैन मंदिरों का भी निर्माण हुआ। परमार राजा मुंज को कवि वृष की उपाधि दी गयी थी। उसकी सभा में हलायुध नामक विद्वान रहता था जिसने अभिदान रत्नमाला लिखी। उसकी राज्यसभा में सर्वाधिक विद्वान पड्डगुप्त था जिसने नवसाहसंक लिखी। मुंज ने स्वयं भी कुछ ग्रंथ लिखे जो अब प्राप्त नहीं होते।

तस्वीर मे धार का किला। 

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