Story special...


           “आज पिंकी क्यों नहीं आई ?” क्लास में गप्पें मारते हुए जब बातें खत्म हो गई, तो धनंजय सर ने ऐसे ही टाइम पास के लिए पहली कतार में बैठी प्रभा से पूछ लिया । 

प्रभा –“सर वो उसकी बड़ी दीदी की शादी है आज” 

सर – “अच्छा दो साल पहले ही तो उनकी दीदी ने बारहवीं पास की थी, शादी आ गई उनकी ? वैसे सही है घर वालों ने सोचो होए कि जल्दी फ्री करो”

उनकी इस बात को सुनकर सारी क्लास हंसने लगी पीछे बैठे कुछ लड़के आपस में कुछ फुसफुसाने लगे ।

“लेकिन सर उनकी दीदी पढ़ने में तो अच्छी थी, अभी इतनी जल्दी शादी कराने से तो उनका फ्यूचर ही क्या बनेगा ?” लड़कों के समूह में पहली पंक्ति में बैठे विजय ने सर की बात काटते हुए कहा ।

सर क्लास को हंसाने के मकसद से बोले : “सो का हो गयो, शादी के बाद बन जाएगो उनको फ्यूचर ।“ 

विजय की बात सारी क्लास की हसीं के सामने दब गई ।

सर लड़कियों को केंद्रित करके फिर बोले : “और देवियो इस साल 12 पास कर लो फिर तुम लोगों का भी नंबर आना है ।“

“सर, हम लोगों का नंबर लग जाए इसीलिए तो आपके पास पढ़ रहे हैं न ? और पढ़ने का मकसद ही क्या है ?” क्लास की होनहार छात्रा मीरा बोली । उसकी बात में आक्रोश था, शायद बहुत देर से सर की लड़कियों के प्रति इस सोच को सुनकर अंदर ही अंदर दहक रही थी ।

सर : “मीरा, तुम काहे इतनी गुस्सा हो रही हो 3 साल बाद तुम्हारा भी नंबर लगेगा ; हम जानते हैं तुम्हारे पापा को, वे बड़े जल्दी हाथ पीले कर देंगे तुम्हारे । फिर पूरी क्लास हंसने लगी ।“

मीरा निरुत्तर हो गई क्योंकि वह इस बात से अनजान नहीं थी कि सर उसके पापा के स्वभाव के बारे में सही कह रहे थे ।

          धनंजय सर के मोबाइल पर कॉल की घंटी बजी और सर ने घड़ी की तरफ देखकर कहा 10 बजने में 10 मिनट रह गए पर आज के लिए इतना ही, ये फाइव चैप्टर कल तक याद कर लाना । इसी के साथ उस हॉल में बैठी भीड़ धीरे-धीरे करके इस तरह से निकलने लगी जैसे मोरारी बापू की कथा सुनकर भक्त निकलते हैं ।

          आमतौर पर इंदरगढ़ की सभी कोचिंगों का यही हाल था । जो तथाकथित कोचिंग टीचर होते थे वो अपने एक घंटे में इसी तरीके से पढ़ाते थे कि उनके 15 मिनट मोबाइल चलाने में, 15 मिनट गप्पें मारने में लग जाते हैं और जो बमुश्किल से 30 मिनट बचते हैं उनमें वो अपनी रट्टा मार तकनीक से पढ़ा देते थे । यहां के सभी कोचिंगों के शिक्षक महाशय दो ही चीजों की योग्यता रखते थे, एक तो डंडा मारने की कला का और दूसरा था अनुभव – कुछ सालों की रट्टा मार तकनीक का । 

          बुंदेलखंड के छोटे से कस्बे इंदरगढ़ में गंज का इलाका कोचिंगों का अड्डा था । यहां एक से एक बैनर मिलेंगे । किसी का दावा है – “हम बनाते हैं टॉपर, अगले आप” तो किसी का दावा है – “हम कहते नहीं करके दिखाते हैं“ इन्हीं में से एक अग्रता कोचिंग के संचालक हैं धनंजय सर । उनकी कोचिंग ने पिछले साल इंदरगढ़ से एक छात्र को टॉप कराया था । अब वह छात्र इनकी कोचिंग से टॉपर बना या अपनी मेहनत से, ये तो परमपिता परमात्मा ही जनता है ।

                    मीरा भी अपनी सहेली खुशी के साथ कोचिंग से घर जाने लगी । अक्सर यहां से गुजरने वाली लड़कियों को कुछ आवारा लड़कों का सामना करना पड़ता था जो घर से तो पढ़ने जाने का कहकर निकलते थे पर यहां रोड किनारे बैठकर आती-जाती लड़कियों को देखकर सीटी बजाते और उन पर अभद्र टिप्पणियां करते थे । कोचिंग के अंदर वीर बनने वाले मास्टर भी इन लड़कों से कुछ नहीं कह पाते थे । एक लड़का मीरा की तरफ देखकर सीटी बजाता है । मीरा खुशी से कहती है : “जी तो करता है इस कुत्ते का मुंह नोच लूं ।“

खुशी : “रहने दे यार क्यों टेंशन लेती है, अपने फैन हैं ये लोग, अब अपन को देखकर सीटी भी न बजाएं तो क्या करें ।“

मीरा : “तुझे ही अच्छा लगता होगा इनका सीटी बजाना । मुझे तो आग छूटती है इन लोगों की शक्ल देखकर । समझ में नहीं आता कि ये कैसा बुरा नियम है कि लड़का चाहे पढ़े भी न फिर भी उसे पढ़ने पहुंचाओ और अगर लड़की पढ़ना भी चाहे तो भी उसकी शादी करके उसके अरमानों को कुचल दो ।“

खुशी : “बेटा ! भगवान ने अपन को ब्यूटीफुल इसीलिए बनाया हैं क्योंकि अपन को पढ़ने लिखने की जरूरत ही नहीं हैं, अगर अपन ब्यूटीफुल हैं तो किसी पैसे वाले लड़के से शादी हो ही जाएगी और फिर ज़िंदगी भर ऐश ।

मीरा : “किसी और के टुकड़ों पर पलकर तो कुत्ते भी ऐश कर रहे हैं, पर वो कोई जिंदगी तो नहीं ।“

खुशी : “वैसे भी कौनसा महारानी विक्टोरिया वाली जिंदगी जीते हैं, घर जाकर काम करना पड़ता है फिर जो टाइम बचता हैं उसमें पढ़ाई करते हैं ।“

मीरा : “इसी चीज को तो बदलाव की जरूरत है । जिस दिन लड़कियों को अपनी पावर्स का पता चलेगा न उस दिन से इन लफंगों की सीटी बजाने की हिम्मत नहीं होगी ।“

           इन्हीं बातों के दौरान चलते चलते खुशी का घर आ जाता है । मीरा का घर उसके घर से लगभग 50 मीटर की दूरी पर है, तो दोनों एक दूसरे को बाय कहकर अपने अपने घर को चली जाती हैं ।

                      मीरा एक मध्यम वर्गीय परिवार की लड़की है । उसके पिता द्वारिका प्रसाद बाजार में एक जनरल स्टोर की दुकान चलाते हैं, मां जानकी देवी घर का काम देखती हैं । घर में एक छोटा भाई मनोज भी है जो दसवीं कक्षा में है । मीरा के पिता रूढ़िवादी स्वभाव के व्यक्ति हैं, नारी सशक्तिकरण जैसे मामलों में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है । मीरा को पढ़ाने का भी उनका कोई उद्देश्य नहीं था ।

                  मीरा पढ़ाई में होशियार थी, हालांकि वो क्लास के सबसे होशियार छात्र विजय जितने अच्छे मार्क्स तो नहीं लाती थी पर इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि उसे घर का काम भी करना पड़ता था ।

         धीरे-धीरे समय बीतता गया । सभी बारहवीं के छात्र-छात्राओं की परीक्षा हो चुकी थी और आज परिणाम भी आ गया जिसमें विजय ने इंदरगढ़ में 94 प्रतिशत अंक प्राप्त कर टॉप किया । रॉयल स्टार कोचिंग से चंदू ने 86 प्रतिशत के साथ तीसरा स्थान प्राप्त किया और दूसरा स्थान 90 प्रतिशत के साथ मीरा को प्राप्त हुआ । 

         बारहवीं कक्षा के बाद हर स्टूडेंट के सामने खुला आसमान होता है जो उड़ना चाहे उड़ सकता है । सभी की अलग-अलग क्षमता होती है और हर स्टूडेंट अपनी क्षमता से उड़ने के लिए ऊंचाई तय करता है । मीरा जैसी लड़कियां भी इसी आसमान में उड़ना चाहती हैं लेकिन उनके उड़ने की एक सीमा इस समाज ने तय करके रखी है, अगर वो उस सीमा को पार करने की कोशिश करती हैं तो उनके सपनों की हत्या करने के लिए समाज के ताने ही काफी हैं । यह उड़ान तब और ज्यादा मुश्किल हो जाती है जब माता-पिता भी उसी कुटिल समाज के पक्ष में हो ।

          बारहवीं के रिजल्ट के बाद मीरा ने बीए में एडमिशन ले लिया ।  खुशी ने भी उसी के देखी-देखा बीए में ही प्रवेश ले लिया । खुशी का पढ़ाई में कम मेक अप में ज्यादा मन लगता था । आखिर ऐसे ही नहीं उसके इंस्टाग्राम पर 10 हजार फॉलोअर्स थे । मीरा को इन सब फालतू कामों में कोई रुचि नहीं थी । उसके पास समय कम था और आकांक्षाएं अधिक इसलिए उसने दिल्ली से बहुत सारे नोट्स मंगाए और नियमित पढ़ाई करना शुरू कर दिया । ये नोट्स यूपीएससी के थे । वो हमेशा से चाहती थी कि इस समाज की लड़कियों के प्रति सोच बदले, लेकिन अकेला चना भाड़ भी तो नहीं फोड़ सकता ना । उसने कहीं सुना था की समाज को बदलने के लिए विशेष अधिकारों की जरूरत होती है जो यूपीएससी जैसी बड़ी सर्विस से ही मिल सकते हैं । लेकिन यूपीएससी हलवा थोड़ी ना है इसके लिए दिल्ली में कितने ही लोग कोचिंगो के चक्कर लगा लगाकर चप्पल घिस रहे हैं फिर भी सालों की मेहनत के बाद भी नहीं हो पाता है तो मीरा का कैसे होगा ? मीरा इन सब बातों से अनजान न थी, लेकिन उसने फिर भी किसी बात की फिक्र न करते हुए अपनी तैयारी को जारी रखा । उसमें अलग ही लेवल का मोटिवेशन था जो संदीप माहेश्वरी की वीडियो देखकर नहीं अंदर की आवाज सुनकर मिलता है ।

                 समय का पहिया चलता गया और धीरे धीरे तीन साल बीत चुके थे । मीरा अब 21 साल की हो चुकी थी । मीरा की अधिकतर सहेलियों की शादी हो चुकी थी । मीरा की पढ़ाई भी घर के काम काज के बाबजूद ठीक चल रही थी । उसकी बीए फाइनल हो चुकी थी, उसने एक बार यूपीएससी का प्री दे लिया था, शायद उसका निकला नहीं था इसलिए वो गुमसुम सी रहती थी, बस किताबों में खोई हुई सी । मीरा दिखने में सुंदर थी और अब बड़ी भी हो चली थी, तो उसके माता – पिता को उसकी शादी की चिंता होने लगी । द्वारिका प्रसाद जी मीरा के लिए अच्छे लड़के की तलाश में रहते थे ।

                       आज मीरा के घर में सुबह से ही रौनक थी । मीरा आशंकित थी उसे शायद कुछ बुरा होने का आभास हो रहा था । फिर भी उसने जानकी देवी से पूछा : “ क्यों मम्मी ये सुबह से क्या चल रहा है घर में ?

मम्मी ने काम करते हुए बेपरवाही से जवाब दिया : “तुझे देखने वाले आ रहे हैं आज..”

मीरा : “मम्मी हमने आपसे कितनी बार तो मना किया है कि हमें अभी शादी नहीं करनी है ।“

मम्मी : “तेरे करने न करने से का होत है, यहां घर पर बैठा के नहीं रखनें हमें तुमकों ।

मीरा : “लेकिन हमें पढ़नें है अभी...”

मम्मी : “शादी के बाद ससुराल में पढ़ियो अब…”

मीरा : “काहे ? तुमपे नहीं पढ़ाया जा रहा ? तुमपे बोझ बन गए हम ?”

मम्मी : “हओ मुंह चुप्प कर लो, सास से कहियो ऐसे सो वो चुटिया में ऐसी आग लगे के बिना पढ़े ही इंदिरा गांधी बन जेहो…”

मम्मी के इस धोबी पछाड़ का मीरा के पास कोई जवाब न था । इसलिए वो चुप हो गई और वो अपने घरवालों को मन ही मन ताने मारते मारते अपने कमरे में ही चली गई । 

इधर मनोज आया और कोई गहरा राज बताने वाले भाव से बोला : “तुम्हें पता है ग्वालियर से आ रहे हैं तुम्हे देखने वाले... लड़का पुलिस में है । तुम्हारी तो किस्मत खुलने वाली है ।“

मीरा : “पुलिस में है तो कौन - सा तोप है ? दो – तीन साल रुक जाओ हमारा यूपीएससी निकला न तो ऐसे पुलिस वाले तो आगे पीछे घूमेंगे ।“

मनोज : “का कह रहीं हो ? दो तीन साल ! हा हा हा हा ! पापा आ जाए तब कहियो ये, तब वे बना दे तुम्हें कलेक्टर । हा! हा! हा! हा!”

मीरा : “हंस ले बेटा, सबसे पहले जेल में तुझे ही डालूंगी...”

मनोज : “ओहो ! क्या सपने हैं...”

दोनों की नोंक - झोंक सुनकर दूसरे कमरे से मम्मी आकर बोली : “ज्यादा दांत मत फाड़ो, रे मनोज जा जाकर देख पापा आए अभी तक या नहीं । इतना सारा काम पड़ा है, कैसे होगा...” “लड़के वाले 12 बजे आयेंगे, 9 तो अभी बज गए हैं, ऊपर से जे महारानी यहां किताबें लेके बैठीं । इन्हें तो कोई घर की लोक-लाज की फिक्र ही नहीं है ।

मीरा चुप चाप सुनती रही । लेकिन उसके दिमाग़ पर इन सब तानों का बहुत गहरा असर हो रहा था । उसकी पढ़ाई की उम्मीद टूट रही थी । उसे लगने लगा की अब यही उसकी सच्चाई है कि उसे बस किसी का घर चलाना होगा, बच्चे पालने होंगे और उसके जीवन का कोई स्वतंत्र उद्देश्य तो है ही नहीं । अगर वह ज्यादा ना-नुकर करती है तो अभी सब के सब उसे घर की मर्यादा, लोक - लाज, इज्जत की दुहाई देने लगेंगे । दिमाग़ की इसी उधेड़ बुन के चलते उसने किताबें बंद करके रख दी और वो भी मम्मी के कामों में हाथ बटाने लगी । ऐसा लग रहा था कि दिमाग कहीं और था और हाथ किसी दूसरे दिमाग से चल रहे थे । जब वो शांत हो गई तो मम्मी ने अच्छा मौका पाकर कहा : “बेटा मीरा ! देख हम तेरे दुश्मन तो हैं नहीं । जो भी सोचेंगे तेरा भला...”

मीरा : “हां पता है हमें, बताइए और क्या काम करना है ?”

मम्मी : “इससे तो भले की बात करना ही बुरा है । जा जाकर किचन में कुछ बर्तन रखे हैं उन्हें साफ कर ले ।“

                  दोपहर के 12 बज चुके हैं । घर पर सारी तैयारी हो चुकी है । किसी भी वक्त लड़के वाले आते ही होंगे । घर पर कुछ रिश्तेदार भी आ चुके हैं, गांव से मीरा के दादा, चाचा आदि लोग भी आ गए हैं । पड़ोस से खुशी एवं कुछ महिलाएं भी आ गई थी । मम्मी सारी तैयारी को लेकर आश्वस्त हैं लेकिन फिर भी सब पर बार-बार नजर दौड़ा रही थीं, कहीं कोई कमी तो नहीं रह गई । मीरा की मां ने उसे लाल रंग का सूट पहनने को दिया था । उसके अब हाथ पैर फूलने लगे कि वह इतने लोगों के सामने शादी का विरोध कैसे करेगी । मां ने पहले ही कह रखा है : “देख इज्जत बचा लेना, नाक मत कटवा देना महमानों के सामने ।“ 

                     तकरीबन एक बजे लड़के वाले आते हैं । उनकी तरफ से छः-सात लोग आए थे जिनमे एक ठीक-ठाक कद काठी का लड़का जिसका नाम कमल कुमार था, उसके साथ उसका छोटा भाई जो देखने में टिक-टॉकर लग रहा था, साथ में दोनों के पिता लक्ष्मीनारायण जी, माता रजनी देवी, तथा दो-तीन अन्य लोग थे, जो उनके रिश्तेदार लग रहे थे । सबका सत्कार किया गया । नाश्ता-पानी का अच्छे से खयाल रखा गया । बाहर बैठक में सभी पुरुष तथा अंदर के कमरे में सारी महिलाएं बैठी हुई थी । लड़के की माताजी का बात करने का अंदाज़ सातवें आसमान पर था, शायद कमलकुमार की पुलिस की नौकरी का अभिमान था उनको । सब लोगों की आपसी सहमति से बाहर से लड़के को बुलाया गया और अंदर से मीरा को भी बुलाया गया । दोनों आमने सामने बैठे हुए थे । तभी रजनी देवी ने मीरा पर एक सवाल दागा : “क्या नाम है बेटा तुम्हारा ?”

मीरा ने नजरों को झुकाए रखा और जवाब दिया : “मीरा”

रजनी देवी : “पढ़ाई में क्या चल रहा है ?”

मीरा : “बीए फाइनल हो गया है हमारा...”

रजनी देवी : “चलो अच्छा है तुम्हारी पढ़ाई पूरी हो गई है, अब तो...”

मीरा : “अभी पढ़ाई पूरी नहीं हुई हमारी, चल रही है...”

रजनी देवी : “पढ़ने की जरूरत ही क्या है अब, मेरा कमल तो है सर्विस में, तुम तो बड़ी भाग्यशाली हो बेटा जो वीआईपी सर्विस मैन लड़का मिल रहा है...”

मीरा : “कौनसी पोस्ट पर हैं अभी ?”

रजनी देवी : “अभी तो कलेक्ट्रेट में कांस्टेबल है पर जल्दी ही प्रमोशन हो जायेगा... कलेक्टर तक उसकी पहचान है बेटा ! तुम चाहो तो उससे गाइडेंस ले लिया करो...”

मीरा : “यूपीएससी का प्री निकाल चुके हैं हम...”

एकदम से सारे कमरे में ख़ामोशी छा गई । लड़का अभी तक अपने आप को बहुत बड़ा तीस मार खां समझ रहा था, अब जमीन पर आ गया । रजनी देवी को भी मीरा का इस तरह से जवाब देना पसंद नहीं आया, और मीरा की मां को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ा कि उसका प्री निकल गया था पर उसने बताया नहीं था, वह तो गुस्से भरी आंखों से मीरा की तरफ देख रही थी ।

लड़का अपनी मां के सपोर्ट में बोल पड़ा : “तो प्री निकालने का मतलब ये थोड़ी ना होता है कि यूपीएससी निकल ली, अभी तो बहुत सारी...”

मीरा : जी बिलकुल, पर कॉन्स्टेबल बनने का मतलब भी तो वीआईपी सर्विस मैन बनना नहीं होता है न, दिन भर धूप में डंडा लेकर खड़ा...”

इतना कहकर मीरा चुप हो गई ।

मीरा की ऐसी तर्कपूर्ण बातों को सुनकर सबके कान खड़े हो गए । उसकी बातें सही थीं फिर भी वह सबकी नजरों में बुरी बन चुकी थी ।

           जैसे तैसे एकाद घंटे की सामान्य बातचीत के बाद लड़के वाले चले गए । लड़के के पिता ने बातों ही बातों में द्वारिका प्रसाद से कह दिया था कि उन्हें दहेज़ में एक चारपहिया वाहन चाहिए । लड़के वालों के जाते ही घर में महाभारत शुरू हो गया, जब द्वारिका प्रसाद को पता चला कि मीरा ने लड़के और उसकी मां से कैसे बात की । मम्मी-पापा उसे भला बुरा कहने लगे । घर में बाक़ी रिश्तेदार और पड़ोसी इस तमाशे का मन ही मन आनंद ले रहे थे ।

           शाम तक सारे रिश्तेदार और पड़ोसी जा चुके थे, अभी कुछ देर पहले लड़के वालों का फ़ोन आया था, उन्होंने कह दिया कि हमारे लड़के को आपकी लड़की पसंद नहीं है, उसके अभी से ये तेवर हैं तो शादी के बाद घर में क्या गुल खिलाएगी । द्वारिका प्रसाद जी हारे हुए योद्धा की तरह हथियार डाल चुके थे, उन्होंने लक्ष्मीनारायण जी और रजनी जी से माफी मांगी और कॉल काट दिया । इस बात से सारे घर में तनाव का माहौल था । मां बहुत देर से मीरा को ताने मार रही थी, तभी अचानक से द्वारिका प्रसाद बोले : “अब काहे मुंह फाड़ रही हो, जब औलाद ही खराब हो तो कहने से का फायदा...” मीरा को यह सुनकर बहुत बुरा लगा, जैसे उसने कुछ पाप कर दिया हो फिर भी वह चुप रही ।

जानकी देवी बोली : “जाके लाने इतनों जतन करके सरकारी नौकरी वाला लड़का ढूंढा था, अच्छी भली बात आगे बढ़ती पर जो नागिन कुछ अच्छा होने ही नहीं देगी...”

द्वारिका प्रसाद : “हमारा कुछ नहीं जाता, जितनी मक्कारी देने सो दे लेवें, नहीं मिल अच्छो लड़का सो हम मजूरन को ब्याह दे सो जिंदगी भर चूल्हे चौके में जिंदगी काटने पड़ और फैक्ट्री में काम करने पड़ सो अलग...”

मीरा आखिर बोल ही पड़ी : “जनम ही क्यों दिया था, उसी दिन मार देते, तो क्यों आज ये सब सोचना पड़ता... “

द्वारिका प्रसाद : “चुप्प कर लो मुंह, हमसे मुंह नहीं चलाबे करे...”

मीरा : “क्यों पापा ? सच्ची बात कड़वी लग रही ? अगर हम नहीं करेंगे मुंह चुप्प, तो आप क्या करोगे... मारोगे ?”

मम्मी : “बाप से मुंह चलाते तुझे शर्म नहीं आ रही है ?”

मीरा : “हमें तो तुमसे भी मुंह चलाते शर्म नहीं आ रही...हमें तो खुद पे शर्म आ रही कि हमें कैसे मां बाप मिले, जिनकी नज़र में हम बस बोझ हैं... इससे अच्छा तो...”

मम्मी : “इससे अच्छा तो ऐसी औलाद होते ही मर जाती तो अच्छी रहती, आज जे दिन न देखने पड़ते...”

मीरा : “अब क्या हो गया, अब फांसी लगा ले हम, सो सबको सुकून मिल जे ।“

मम्मी : “डाकिन, पूरे खानदान की नाक कटवा के मानेगी का ?”

मीरा : “अब हम सुकून से मर भी नहीं सकत ?”

मम्मी : “अब तुम सास के यहां ही मरियो, हम लोगन की इज़्ज़त न मिट्टी में मिलाओ...”

मीरा : “मम्मी एक बात अच्छे से समझ लो, हमें शादी नहीं करनी अभी । हमें अभी...”

मम्मी : “तुम काहे शादी करोगी, किसी के संगे भाग के हम लोगन को मुंह कालो करोगी”

मीरा ने कोई उत्तर नहीं दिया, उसकी मां उससे इतनी बुरी तरह से बात करेगी, उसे अंदाजा न था । बाहर द्वारिका प्रसाद सब बातें सुन रहे थे, उनका मुंह गुस्से से लाल हो चुका था, वे बाहर रखा डंडा उठा लाए और मीरा के कमरे में आकर बोले : “हो रही चुप्प ?”

मीरा पिता के इस स्वरूप को देखकर अंदर तक कट चुकी थी, लेकिन आज उसे किसी बात का डर नहीं था, वो बोली : “अगर मारना ही है तो बिना वजह के ही मार लो...”

द्वारिका प्रसाद : “हमने क्या कहा, मुंह चलाना बंद कर रही या नहीं ?”

मीरा : “पापा अगर आपकी जगह कोई और होता और हमसे ऐसे कहता तो अभी 1091 पर कॉल करते तो सबकी अक्कल ठिकाने आ जाती...”

द्वारिका प्रसाद मीरा के इस तेवर को देखकर कुछ कह नहीं सके, शायद वो समझ चुके थे कि इस लड़की के अंदर से डर निकल चुका है और अब डंडा दिखाने का कोई फायदा नहीं । उन्होंने घोषणा कर दी कि आज से हमारे लिए ये लड़की मर चुकी है, हमें इससे कोई मतलब नहीं । इतना कहकर वे कमरे से बाहर आ गए । पिता के इन कठोर शब्दों को सुनकर मीरा का कलेजा धक्क से बैठ गया । वो रो पड़ी, उसे अपने आप पर पछतावा हो रहा था कि उसने अपने पिता से ऐसे कठोर शब्द कैसे कह दिए । उसे हर तरफ निराशा के काले बादल दिखने लगे, अपने जीवन पर धिक्कार करने लगी, सोचने लगी कि जब उसे अपने भविष्य को अपनी इच्छानुसार आकार देने का अधिकार ही नहीं है तो उसे जीवन ही क्यों मिला ? आज उसे भगवान के न होने का आभास हो रहा था । वो सोच रही थी कि न जाने कितने लड़कियां इस जल्लाद समाज की बलि चढ़ जाती हैं, क्योंकि वे इस समाज में न तो सुख से जी पाती हैं और न ही तसल्ली से मर पाती हैं । मन के इसी अंतर्द्वंद्व के चलते कब शाम से रात हो गई, उसे पता ही नहीं चला । घर में सभी से खाना तो खबना नहीं था लेकिन फिर भी सबने थोड़ा थोड़ा खा लिया था । मीरा को खाने के लिए नहीं बुलाया गया । उसे भूंख भी नहीं थी, तो वो रात को बिना खाना खाए ही सो गई । अगले दिन से घर में उससे कोई बात नहीं कर रहा था, मनोज अनमने मन से थोड़ी बहुत बात कर लेता था । मोहल्ले में मीरा के खिलाफ तरह तरह की अफवाहें उड़नी शुरू हो गईं । जिन औरतों के लड़के भी बारहवीं में मीरा के बराबर नंबर नहीं ला पाए थे, वे तक बातें बनाने लगी । मीरा के घर से दो घर बाजू में रहने वाली मीना भाभी बोली : “मीरा का कहीं चक्कर चल रहा है तभी तो लड़के वालों ने मना कर दिया, लड़की के चाल चलन ठीक नहीं हैं । कल घर में बहुत रात तक कलेश मचा रहा । द्वारिका भाईसाहब के करम में ऐसी औलाद बदी थी तो कोई क्या कर सकता है अब...” एक और पड़ोसन विद्या भाभी बोली : “भागवत वाले बाबा जी सही ही कहते हैं कि लड़की कितनी भी प्यारी हो उसे घर-घर घुमाना नहीं चाहिए, अपन सब को ही देख लो भले ही पढ़े-लिखे कम हो लेकिन आज तक मां-बाप या आदमी से ज़ुबान लड़ा के बात नहीं करी और जे मैडम ने दो चार किताबें का पढ़ लीं, बाप को बाप ही नहीं समझ रहीं ।“

          मीरा की पढ़ाई के लिए ये सब माहौल ठीक नहीं था, उस पर पाबंदियां लगनी शुरू हो गईं । उसने बाहर बैठना और निकलना बंद ही कर दिया था । वह ज्यादातर समय अपने कमरे में ही रहती थी । उसे शायद इस बात की ग्लानि रहती थी कि उसकी वजह से उसके मम्मी-पापा की समाज में कितनी रुसवाई हुई ।

                    धीरे धीरे वक्त फिर रेत की तरह हाथ से फिसलता गया । पर इस बार वक्त शायद करवट ले रहा था । द्वारिका प्रसाद जी के घर पिछली बार भीड़ तब लगी थी जब मीरा को लड़के वाले देखने आए थे । तबसे दस महीने बाद आज फिर घर पर भीड़ लगी हुई थी । उस दिन भी मीरा को देखने वाले आए थे और आज भी मीरा को देखने वाले आ रहे थे, बस फर्क इतना था कि उस दिन मीरा को लड़के वाले देखने आए थे, और आज मीरा को देखने मीडिया वाले आ रहे थे । पड़ोस की विद्या भाभी ने घर से मिठाई का डिब्बा लेकर निकलते मनोज से दो सवाल एक साथ दागे : “मीरा की सगाई हो रही है क्या ? इतने कैमरावाले आ रहे हैं । कहां का लड़का आया है देखने ?”

मनोज उत्साह के साथ बोला : “अरे आंटी, दीदी का यूपीएससी क्लियर हो गया है, लो मिठाई खाओ ।“

विद्या भाभी : “मतलब मीरा मास्टरनी बन गई का ?”

मनोज : “अरे किते मास्टरनी लगाएं आंटी तुम, आईएएस बन गईं दीदी, बहुत बड़ी अफ़सर...”

विद्या भाभी से ये बात हज़म नहीं हो रही थी तो वे घर के अंदर चली गई ।

        अंदर का माहौल एक दम रोमांचित करने वाला था । मीडिया वालों और पत्रकारों से घिरी मीरा नज़रें उठाकर सभी के सवालों का सामना कर रही थी । उसके पीछे उसके मम्मी पापा भी अपना कलेजा छप्पन किए हुए खड़े थे, और आसपास वही रिश्तेदार और पड़ोसी खड़े हुए थे जो दस महीने पहले मीरा को संसार भर की बुरी उपमाएं दे रहे थे ।

“ मीरा जी, आप अपनी इस सफलता का श्रेय किसे देना चाहती हैं ?” एक पत्रकार ने पूछा ।

मीरा ने एक पल रुककर कुछ सोचा और फिर जवाब दिया : “मैं अपनी इस सफलता का श्रेय अपने माता पिता, शिक्षकों और इस समाज को देना चाहूंगी । अगर ये सब न होते तो मुझे शायद आगे बढ़ने की हिम्मत और ऊर्जा नहीं मिल पाती ।“

पत्रकार : “मीरा जी ये जवाब तो हर सफल विद्यार्थी देता है, आप एक लड़की भी हैं आपका संघर्ष भी काफी रहा होगा तो मैं आपसे अलग जवाब की उम्मीद कर रहा हूं ।“

मीरा ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया : “मीरा को मीरा बनने के लिए ज़हर का प्याला तो पीना ही पड़ता है...पत्रकार साहब ।“

मीरा के इन शब्दों ने पूरे कमरे को निरुत्तर कर दिया लेकिन सिर्फ एक इंसान ने इन शब्दों का मर्म समझा, और वो थे द्वारिका प्रसाद । मीरा की मां तो मन की भोली थी उनका क्रोध तो अपनी बेटी की इतनी बड़ी सफलता से क्षण भर में शून्य हो गया । लेकिन द्वारिका प्रसाद जी पश्चाताप की अग्नि में जल रहे थे, उन्हें पछतावा हो रहा था कि उन्होंने अपनी बेटी को कभी वो अवसर ही नहीं दिए जिसकी वो हकदार थी, उसके बाद भी उसने श्रेय भी दिया तो किसे - अपने माता पिता को । दस महीने पहले जिसे वो बुरी औलाद कहकर कोस रहे थे, आज उसी ने उनका सिर ऊंचा किया । वो फूट फूट कर रोना चाहते थे लेकिन घर पर इतने लोगों को देखकर उन्होंने खुद को संभाल लिया और अपनी बेटी की सफलता में शरीक हो गए । 

पत्रकार : “मीरा जी आपको पढ़ने के लिए ऊर्जा कहां से आती थी ?”

मीरा : “पत्रकार साहब ! यूरेनियम जब टूटता है तो ऊर्जा तो अपने आप ही निकलती है...”

आज मीरा की बातों में परिपक्वता का स्तर अलग ही झलक रहा था । 

पत्रकार ने अगला सवाल द्वारिका प्रसाद जी से पूछ लिया : आपकी बेटी ने इतनी बड़ी सफलता प्राप्त की है, आपके सहयोग की सराहना करनी होगी, आप इस देश की लड़कियों को क्या संदेश देना चाहेंगे ?

द्वारिका प्रसाद जी चेहरे पर हल्की सी मुस्कान लेकर बोले : “इस देश की लड़कियों को सफल होना है तो अपने पिता के खिलाफ भी 1091 पर कॉल करने का साहस रखना होगा ।“ इसी के साथ पूरे वातावरण में हंसी का माहौल बन गया । सिर्फ़ मीरा ही अपने पिता के इस बदले हुए स्वरूप को महसूस कर पा रही थी । एक दिन में ही ये दुनिया उसके लिए पूरी तरह से बदल चुकी थी । पड़ोस की आंटियों में अब उसके लिए कुछ भी कहने का साहस नहीं था । धनंजय सर को पता चला तो वे भी अपनी बुलेट से आ गए और पत्रकारों से बोले : “अरे हम तो बहुत पहले से ही जानते थे कि मीरा के अंदर बहुत प्रतिभा है, एक दिन जरूर कुछ बड़ा करेगी, और देख लीजिए आज उसने नाम कर ही दिया ।“ 

मीरा सर को याद दिलाने के मकसद से बोली : “जी सर आपने सही कहा था कि तीन साल बाद मेरा नंबर भी जरूर लगेगा, देख लीजिए आज लग गया ।“ सर को भी अपना जवाब मिल गया था । 

         इस देश में कितने ही धनंजय सर ऐसे हैं जो लड़कियों को उत्साहित करने की वजाय निराश और हतोत्साहित करते रहते हैं । हर लड़की मीरा की तरह साहस नहीं जुटा पाती है और हमारे समाज में एक दो ही मीरा बन पाती हैं ।

          आज मीरा सभी के सवालों, तानों, टिप्पणियों का जवाब थोक में दे रही थी, और आखिर दे भी क्यों न, उसने सबको जवाब देने का अधिकार अपनी मेहनत के दम पर प्राप्त कर लिया था ।

          धीरे-धीरे सभी पत्रकार, मीडियावाले चले जाते हैं । सारे इंदरगढ़ में आज मीरा की ही बात हो रही थी । हर कोई यही कह रहा था कि लड़की ने घरवालों का ही नहीं बल्कि पूरे इंदरगढ़ का नाम रोशन कर दिया । ये वही लोग हैं जो दस महीने पहले मीरा को कलंक कहते थे ।

           आज द्वारिका प्रसाद जी बैठक में बैठे तीन साल पहले की मीरा की तस्वीर देख रहे थे जिसमें वो पत्रकारों के सवालों का जवाब दे रही थी । लगता है एक पिता को अपनी बेटी की याद आ रही थी । आखिर आए भी क्यों न ? जब से ट्रेनिंग के बाद उसकी ज्वाइनिंग हुई है उसे काम काज से फुर्सत कम ही मिलती है । पर जब भी अपनी बेटी से बात करते हैं तो उनका सीना छप्पन इंच का हो जाता है और रही बात मीरा की, तो वो ग्वालियर में अपर कलेक्टर के पद पर कार्यरत है । ये वही कलेक्ट्रेट है जहां वीआईपी सर्विस मैन कांस्टेबल कमल कुमार गेट नंबर 3 पर तैनात हैं...!


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